Book Title: Arhat Vachan 2011 07
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 13
________________ __ वर्ष - 23, अंक - 3, जुलाई-सितम्बर - 2011, 11-13 अनुशासन और शिष्टाचार - आचार्य विद्यानन्द मुनि* कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर वर्तमान परिस्थितियों में जैन साधु संस्था में अनुशासन एवं शिष्टाचार की आवश्यकता एवं उपयोगिता पर केन्द्रित इस आलेख में राष्ट्रसंत आचार्यश्री विद्यानन्द जी ने समसामयिक, आवश्यक चिन्तन प्रस्तुत किया है। आचार्य श्री ने अपने सुदीर्घ अनुभव के आधार पर जो दृष्टि दी है वह अत्यन्त महत्वपूर्ण है। - सम्पादक 'यो मे श्रमणशिरो दास्यति, तस्याहं दीनारशतं दास्यामि ।" 'णरिंदविरुद्धाचरिदे । 'आचार्यादाचार्यान्तरप्रापणमातृतीयं पारश्चिकम् । 'चित्रं जैनी तपस्या हि, स्वैराचार विरोधिनी।" * दि.जैन मुनि परम्परा में वरिष्ठतम् दीक्षित आचार्य, राष्ट्रसंत, सम्पर्क : कुन्दकुन्द भारती, 18-बी, स्पेशल इंस्टीट्यूशनल एरिया, महरौली रोड़, नईदिल्ली-110067

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