Book Title: Arhat Vachan 2011 07
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 90
________________ वैशाली में प्राकृत भाषा और बिहार' विषयक विद्वत् संगोष्ठी सम्पन्न 14 मार्च 2011 को प्राकृत जैनशास्त्र और अहिंसा शोध संस्थान, वैशाली के सभागार में 'प्राकृत भाषा और बिहार' विषय पर एक दिवसीय विद्वत् संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता डॉ. चित्तरंजन प्रसाद सिन्हा, सेवानिवृत्त निदेशक, के.पी. जायसवाल शोध संस्थान, पटना ने की । संस्थान के निदेशक डॉ. ऋषभचन्द्र जैन ने संगोष्ठी के लिए निर्धारित विषय का विवेचन करते हुए कहा कि बिहार राज्य ने विभिन्न प्राकृतों के संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है । मागधी प्राकृत तो बिहार में मगध क्षेत्र से ही विकसित हुई थी। पश्चिमी एवं उत्तरी बिहार की भाषाओं में शौरसेनी प्राकृत का भी प्रभाव देखा जाता है। अर्द्धमागधी के विषय में भी विद्वानों का मानना है कि इसमें आधी मागधी एवं आधी अन्य प्राकृत समाविष्ट होती है इसी कारण से इस भाषा को अर्द्धमागधी नाम दिया गया। मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित करते हुए डॉ. कमलेश कुमार जैन, काशी हिन्द विश्वविद्यालय ने कहा कि प्राकत के संरक्षण में बिहार के योगदान को तथा बिहार के लोगों को भुलाया नहीं जा सकता, क्योंकि 20वीं सदी में भी बिहार सरकार एवं बिहार के लोगों के प्रयत्न से प्राकत के अध्ययन-अध्यापन के लिए 1955ई. में वैशाली में इस संस्थान की स्थापना हुई थी। इस संस्थान एवं इसमें कार्यरत विद्वानों के अध्ययन एवं शोध से लगभग 75 ग्रंथ प्रकाशित हुए हैं ,जो प्राकृत भाषा के संरक्षण के लिए बिहार का विशिष्ट योगदान है। बिहार में प्राकृत भाषा और साहित्य के क्षेत्र में कार्य करने वाले डॉ. हीरालाल जैन, डॉ. जगदीशचन्द्र जैन, डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री, डॉ. गुलाबचन्द्र चौधरी, डॉ. राजाराम जैन, डॉ. रामप्रकाश पोद्दार, डॉ. नथमल टाटिया आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। विद्वत् संगोष्ठी में डॉ. रामजी राय, आरा, डॉ. मंजुबाला, डॉ. रामनरेश राय, डॉ. हरिकिशोर सिंह, डॉ. अनिल कुमार दिवाकर आदि ने भी अपने विचार रखें । अध्यक्षीय वक्तव्य में डॉ. चित्तरंजन प्रसाद सिन्हा ने कहा कि पूरे देश में जितने भी प्राचीन शिलालेख प्राप्त हुए हैं उनमें से अधिकांश प्राकृत भाषा में लिखे हुए हैं। इससे यह पता चलता है कि प्राकृत का प्रभाव सर्वव्यापी था और उसके बोलने तथा समझने वाले लोग तत्कालीन सम्पूर्ण भारत में मौजूद थे। अंत में सभी विद्वानों, श्रोताओं, संवाददाताओं एवं सहयोगियों को धन्यवाद देते हुए सभा पूर्ण हुई। वैशाली में जगदीशचन्द्र माथुर स्मृति व्याख्यानमाला सम्पन्न 15 अप्रैल 2011 को प्राकृत जैनशास्त्र और अहिंसा शोध संस्थान, वैशाली में वैशाली महोत्सव एवं महावीर जयंती के अवसर पर जगदीशचन्द्र माथुर स्मृति व्याख्यानमाला-2011 का आयोजन संस्थान सभागार में किया गया, जिसकी अध्यक्षता डॉ. हरिशचन्द्र सत्यार्थी ने की। व्याख्यानमाला का विषय था 'जनमानस में भगवान महावीर का प्रभाव' व्याख्यानमाला का उदघाटन श्री एस.एम. राजू, आयुक्त, तिरहुत प्रमण्डल, मुजफ्फरपुर ने भगवान महावीर के चित्र के समक्ष दीप प्रज्जवलित करके किया। उद्घाटन भाषण में आयुक्त ने कहा कि यह संस्थान लगभग 6 दशक पुराना है इसकी उन्नति के लिए एक मास्टर प्लान बनाने की दिशा में कार्यवाही की जायेगी। व्याख्यानमाला का विषय समसामयिक एवं महत्वपूर्ण हैं। भगवान महावीर के कालजयी सिद्धांतों को अपने जीवन में उतारने की आज भी उतनी ही आवश्यकता है जितनी 2600 वर्ष पहले थी। व्याख्यानमाला को संबोधित करते हुए आचार्य गोपी लाल अमर, नईदिल्ली ने कहा कि सब प्राणी अमन-चैन और सुख-शांति चाहते हैं। इसलिए आज भी सत्याग्रह की आवश्यकता है क्योंकि वस्तु के स्वभावपरभाव की घुसपैठ नहीं चलती। प्रो. प्रमोदकुमार सिंह, मुजफ्फरपुर ने कहा कि महावीर का दर्शन समता का दर्शन है, यहाँ स्त्री-पुरुष, साधु-साध्वी, अमीर-गरीब, ऊँच-नीच आदि का कोई भेद नहीं था। यदि हमारा समाज सुख शांति चाहता है तो उसे महावीर द्वारा आचरित किये गये तथा कहे गये आचार नियमों को अपनाना ही होगा। समाज में यह महावीर का प्रभाव ही है कि हम वैचारिक स्वतंत्रता के साथ जीवन जी रहे है । प्रो. नवलकिशोर प्रसाद श्रीवास्तव ने कहा कि क्रोध, मान,माया और लोभ,ये चार कषायें ही सारी समस्याओं की जड़ है। यदि हम इन पर नियंत्रण कर सके तो हमारा जीवन आदर्श बन जायेगा, जिससे हमारा वर्तमान जीवन तो सुधरेगा ही, आगामी जीवन अर्थात् परलोक भी सुधर जायेगा। अर्हत् वचन, 23 (3), 2011 91

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