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गतिविधियाँ त्रिदिवसीय राष्ट्रिय प्राकृत व्याकरण कार्यशाला सम्पन्न श्री लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ (मानित विश्वविद्यालय) नईदिल्ली में दिनांक 22 से 24 मार्च 2011 तक त्रिदिवसीय राष्ट्रीय प्राकृत व्याकरण कार्यशाला गरिमापूर्वक सम्पन्न हुई। इसमें उद्घाटन एवं समापन सत्रों के अतिरिक्त छह शैक्षणिक सत्रों में प्राकृत व्याकरण पर गहन ऊहापोह पूर्वक विचार-विमर्श किया गया। इस कार्यशाला का आधारग्रंथ आचार्य वररूचिप्रणीत 'प्राकृत प्रकाश' था।
इसके विभिन्न सत्रों के लिए व्याकरण शास्त्र एवं प्राकृत भाषा के विशेषज्ञ विद्वानों प्रो. राजाराम जैननोएडा, प्रो. जानकी प्रसाद द्विवेदी, प्रो. ओमनाथ विमली, प्रो. भवेन्द्र झा, प्रो. जयकान्त सिंह शर्मा एवं प्रो. कमला भारद्वाज ने शैक्षणिक सत्रों की अध्यक्षता की तथा इनका समर्थ - संचालन विद्यापीठ के साहित्य संस्कृत संकाय के अध्यक्ष एवं प्राकृत भाषा के आचार्य प्रो.सुदीप कुमार जैन ने किया। इसमें कुल 33 वरिष्ठ मनीषी एवं व्याकरणशास्त्र तथा प्राकृतभाषा के शोध-अध्येता सम्मिलित हुए । इनके अतिरिक्त विद्यापीठ के विभिन्न संकायों व विभागों के मनीषी अध्यापक व शोधछात्र भी सम्मिलित रहे।
इसमें निम्नलिखित सुझाव विद्वन्मण्डली द्वारा प्रस्तुत किये गए -
1. प्राकृत व्याकरण के नियमों (सूत्रों) को विविध-वृत्तियों के आधार पर वैज्ञानिक रीति से सम्पादित किया जाए।
2. इनका सटीक ढंग से अर्थ प्रस्तुत किया जाए। 3. इनके असंदिग्ध-उदाहरण देकर उनमें सूत्रार्थ को घटित करके दिखाया जाए। 4. अन्य संदर्भित-नियम पादटिप्पणी के रूप में दिये जाए।
5.व्याकरणिक-शैलीगत नियमों के बारे में (यथा-प्रत्याहार-प्रयोग, विविध-संज्ञाएं व उनका विवरण आदि) प्रस्तावना में विशद-रीति से लिखा जाए।
6. इनके शब्दों व धातुओं का वर्गीकृत संक्षिप्त कोश भी दिया जाए। 7. प्राकृत भाषा के मूलभूत नियमों को अलग से स्पष्ट किया जाए। 8. देशी प्रयोगों के बारे में सार्थ विवरण दिया जाए।
9. आधुनिक आंचलिक-भाषाओं एवं बोलियों के प्रयोगों का तारतम्य तत्त्वछेत्रीय प्राकृत अपभ्रंशों के क्रम से वैज्ञानिकरीति से देकर इनकी परम्पराएं स्पष्ट की जाए।
10. विद्वानों की विशेषज्ञ मंडली निर्धारित कर इस कार्य में उनकी निरंतर परामर्श ली जाए।
11. कार्य पूर्ण होने पर प्रकाशन से पूर्व एक 15-20 दिवसीय कार्यशाला करके वरिष्ठ विशेषज्ञ विद्वानों के मध्य इसके नवनिर्मित स्वरूप पर विशद समीक्षा करने के बाद आवश्यक संशोधन/परिवर्धन आदि किए जाएं।
12. तदुपरान्त इसे विद्यापीठ प्रकाशन के रूप में प्रकाशित कराकर देश-विदेश के प्राकृत जिज्ञासुओं को उपलब्ध हो सके - ऐसी व्यवस्था भी की जाएं।
उद्घाटन एवं समापन सत्रों में अध्यक्षीय वक्तव्यों में माननीय कुलपति जी ने इन सभी प्रस्तावों को लागू करने पर जोर देते हुए कहा कि यदि अपेक्षा हो, तो इस कार्य के लिए प्राकृत के एक अतिथि-प्राध्यापक की भी नियुक्ति की जाए। साथ ही निर्मित होने के बाद इस ग्रंथ का प्रकाशन विद्यापीठ का प्रकाशन विभाग करेगा
अर्हत् वचन, 23 (3), 2011
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