Book Title: Arhat Vachan 2011 07
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 35
________________ 2. अजीव 234 3. आस्रव बंध 5. संवर 6. निर्जरा मोक्ष 1. कर्मों का अंतिम और स्थायी वियोग, आत्मस्वरूप का प्रकटीकरण सुख देने वाला उदीयमान शुभ कर्म पुद्गल समूह 8. पुण्य 9. पाप दुख देने वाला उदीयमान शुभ कर्म पुद्गल समूह ये नौ पदार्थ जैन अध्यात्म विद्या के मुख्य तत्त्व हैं। इनमें से प्रथम दो दृश्यमान स्थूल जगत से संबंधित है। शेष सात अदृश्य मनोभाव है और सूक्ष्म जगत से संबंधित हैं। संपूर्ण जैन दर्शन स्थूल और सूक्ष्म इन नौ पदार्थों के वैज्ञानिक विश्लेषण पर केंद्रित है पदार्थ की शाश्वतता और अंतर्निर्भरता एवं सापेक्षवाद जैसे विज्ञान के मूलभूत सिद्धांत जैन दर्शन की नींव में हैं। और इस विश्लेषण के माध्यम हैं। यहां प्रथम दो तत्त्व जीव और अजीव, जो भौतिक पदार्थ हैं और जो विज्ञान के भी विषय हैं, के वर्गीकरण पर भी एक दृष्टि डालना समीचीन होगा। - - त्रस (जंगम) पृथ्वी जल वायु अग्नि वनस्पति निगोद एकेंद्रिय द्वीन्द्रिय त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय पंचेन्द्रिय निगोद एक देह एवं एक श्वास प्रक्रिया वाले अनन्त जीवों का समूह - अचेतन पदार्थ आत्मा की कर्म ग्रहण करने वाली अवस्था आत्मा के साथ दूध पानी की भाँति एकीभूत होने वाला कर्म पुद्गल समूह आत्मा की कर्म निरोध करने वाली अवस्था आत्मा की कर्म क्षय करने वाली अवस्था स्थावर एकेंद्रिय - आँखों से न दिखने वाले केवल स्पर्श संज्ञा युक्त जीव द्वीन्द्रिय स्पर्श और स्वाद, दो संज्ञा युक्त जीव त्रीन्द्रिय स्पर्श, स्वाद और प्राण तीन संज्ञा युक्त जीव धर्मास्तिकाय जीव और पदार्थ की गतिशीलता में साधन रूप जीव चतुरिन्द्रिय स्पर्श, स्वाद, घ्राण और दृष्टि, चार संज्ञा युक्त जीव पंचेन्द्रिय - स्पर्श, स्वाद, घ्राण, दृष्टि और श्रवण - पांचों संज्ञा एवं बौद्धिक सामर्थ्य युक्त जीव । विश्लेषण और प्रभेद कर पाने की क्षमता एवं विवेक के कारण मनुष्य इनमें श्रेष्ठ है । अधर्मास्तिकाय जीव और पदार्थ की अपनी गति को रोकने में अजीव आकाशास्तिकाय पुद्गलास्तिकाय काल समय छोटे या बड़े सभी द्रव्यों / पदार्थों के परमाणु जीव और पदार्थ दोनों के होने / रहने का स्थान साधन रूप अजीव के ये पाँचों प्रकार (द्रव्य) शाश्वत हैं। ये कभी नष्ट नहीं होते । अ, आ, ई आदि स्वर अक्षर और क, ख, ग आदि व्यंजन अक्षर संपूर्ण वर्णमाला है। इनके बाहर कोई शब्द नहीं, कोई ध्वनि नहीं। जैन दर्शन के ये नौ तत्त्व / पदार्थ भी इसी तरह अपने आप में पूर्ण हैं । संपूर्ण ब्रह्मांड में उनके बाहर अन्य किसी चीज की कल्पना संभव नहीं । यह तथ्य ही अपने आप अर्हत् वचन, 23 (3), 2011 33

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