Book Title: Arhat Vachan 2011 07
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 40
________________ ऋषभदेवकालीन भारत करीब इशाख ववे । भूवैज्ञानिकों के निष्कर्षाव व पौराणिक सदओं के आधार पर "यूराशया टर्थिसापयारथि सागर मधमेवा 1 -1 मगर उहाड़ नामदानदा कोशल मुहर आना संकेत समुद्र पहाड़न उभरे थव ऋषभ देवका विहार बाद मे उभरी सामाग दक्षिण के पठार नचित्र स्केल मे नहीं उत्तर में एक अति विस्तृत युरेशियाई महार्णव. जिसे टेथिस या पयोदधि के नाम से पुकारते हैं, उस सारे भूखंड पर छाया हुआ था जो मध्य यूरोप से लेकर लघु एशिया, उत्तरी भारत और बर्मा तक फैला हुआ था। इस समुद्र में छुट्टा आने जाने के मार्ग थे, उन्ही के कारण चीन, मध्य हिमालय और बर्मा जैसे विलग प्रदेशों से प्राप्त जीवाश्म चिन्हों में परस्पर समानता पाई जाती है। बहुत अरसे के बाद पहाड़ों के तक्षण करने वाले धक्कों का अनुभव हुआ। पाथोदि समुद्र (टेथिस) पश्चिम की और हटा और उसकी तलहटी उभर आई और उसके दोनो किनारों की भूमि एक दूसरे से मिल गई। उन किनारों के बीच में जो मुलायम समुद्री धरती थी उसमे सिकुड़नों के पड़ने और कुचलने से भारत के हिमालय, ईरान के पहाड़, कार्पेथिया के पर्दत और आल्पस पर्वर्ती का निर्माण हुआ। •राधाकुमुद मुखर्जी प्रसिद्ध इतिहासकार हिन्द्र सभ्यता से साभार चित्र क्र.2

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