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शुद्ध मन, वचन, कार्य से भक्तिपूर्वक गोपाचल पार्श्वनाथ के दर्शन करता है, उसकी मनोकामना पूर्ण होती है। अतः गोपाचल अतिशत क्षेत्र है । ग्वालियर दुर्ग पर उत्कीर्ण तीर्थंकरों की प्रतिमाओं के अतिरिक्त तीर्थंकर भगवान के पांचों कल्याणकों भी शिल्पांकित किया गया है। दुर्ग परिधि के परिकोटे के बाहर होने की वजह से अन्य प्रतिमा समूहों की अपेक्षा उपेक्षित पंच कल्याणक प्रतिमा समूहों का उल्लेख बहुत ही अल्प मात्रा में ऐतिहासिक ग्रंथों व शोध प्रबंधों में मिलता है, जबकि यह पृथक से शोध का विषय है।
उरवाई गेट से 200 मीटर पहले दाएं हाथ पर 108 सीढ़ियां चढ़कर शैल गुफा मंदिर है। इन गुफा मंदिरों का निर्माण शास्त्र सम्मत परिकल्पना के आधार पर ही हुआ है । शैल गुफा मंदिरों में क्रमबद्ध रूप से तीर्थंकर के पांचों कल्याणकों को दर्शाया गया है।
पंच कल्याणक तीर्थंकर के गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान व निर्वाण की पंच अवस्थाओं को कहा जाता है। प्रत्येक अवस्था अत्यंत महत्वपूर्ण व कल्याणकारी होती है। इन पंच कल्याणक को स्वर्गों के दे व व मनुष्य अत्यंत हर्ष से मनाते हैं।
गर्भ कल्याणक -
तीर्थंकर भगवान के गर्भावतरण होने पर इन्द्र की आज्ञा से कुबेर रत्नों की वर्षा करते हैं । गर्भ में आने पर उनकी माता को 16 शुभ स्वप्न दिखते हैं। इसी गर्भ कल्याणक अवस्था को दर्शाती है। प्रथम गुफा।
इसमें तीर्थंकर माता की लगभग 8 फीट लम्बी लेटी हुई निन्द्रावस्था की प्रतिमा है। यह प्रतिमा त्रिशला माता की मानी जाती है । दक्षिण की ओर मस्तक व मुख पश्चिम की ओर है, जो करवट की मुद्रा में है । दायां पैर बाएं पैर के ऊपर हैं बाएं हाथ को सिर के नीचे रखे हुई हैं व दाएं हाथ को दाएं पैर के ऊपर रखे है । अनुपातिक दृष्टि से उच्च स्तर की सुन्दर प्रतिमा है, मुख मुद्रा शांत व सौम्य है, आंखें बड़ी व निन्द्रामग्न है, भौहें धनुषाकार हैं। मुख ठोड़ी पर से थोड़ा खण्डित है । दायां हाथ बांह के बीच में खण्डित है, उंगलियां पांचों दिख रही हैं, अन्य खण्डित हैं। दाएं पैर की सभी उंगलियां खण्डित है। आभूषणों से सुसज्जित हैं, कानों में कुण्डल, गले में मोतियों से जड़ित कंठी व उदर बंध तक लटकी मोतियों की माला है - कटिसूत्र । हाथों में कंगन है । केश सज्जा दक्षिण भारतीय शैली में केशाभूषणों में सूर्य, चन्द्र, पुष्प अंकित है, हाथों में बाजूबंद है । माता के मस्तक के सहारे एक परिचारिका बैठी है, एक अन्य परिचारिका माता के पैर को गोद में लिए हुए है। माता की पृष्ठभूमि में तीर्थंकर प्रतिमा पद्मासन मुद्रा में है । ऊपर तीन छत्र है, उनके पास में दो मृदंग उकेरे गये हैं। दो-दो युगल देव प्रतिमाओं को उनके विमान में दर्शाया है । तीर्थंकर की प्रतिमा सिंहासन वेदी पर दो शेर अंकित हैं । वेदी के दाए-बांए एक-एक चंवर धारी चंवर ढ़ोते हुए व दो जोड़े युगल के दर्शाये हैं । इस गुफा में संवत् 1558 उत्कीर्ण किया हुआ है, मात्र एक लाईन में और टूटी-फूटी भाषा में होने से समय निर्धारण करने में भ्रम उत्पन्न होता है । माता व परिचारिकाओं पर ओपदार पॉलिश है। माता के मुख मण्डल की आभा बरबस ही आकर्षित करती है। वर्तमान में मान्यता स्वरूप सूखे रोग से पीड़ित बच्चे को आशीर्वाद दिलाने परिवार जन शनिवार व रविवार के दिन आते हैं व पुष्पमाला आदि से पूजा करते है । (चित्र संख्या - 1)
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अर्हत् वचन, 23 (3), 2011