________________
जन्म कल्याणक
तीर्थंकर भगवान के जन्म होने पर इन्द्राणी प्रसूति गृह में जाकर मायामयी बालक को माता के पास रखकर बालक प्रभु को लाती हैं, कुबेर रत्नों की वर्षा करते हैं व इन्द्रों द्वारा बालक को सुमेरु पर्वत के ऊपर ले जाकर 1008 कलशों से अभिषेक करके जन्म कल्याणक मनाया जाता है, दूसरी गुफा में जन्म कल्याणक रचना को दर्शाया गया है। कुबेर व इन्द्राणी लगभग 4 फीट की बैठी प्रतिमा है, इन्द्राणी भाव विह्वल मुद्रा में अर्धपर्कासन में सिंह आसन पर आरूढ़ है। एक बालक को बाएं हाथ से पकड़े हुए गोद में बिठाया हुआ है, दूसरा बालक खड़ा है, इन्द्राणी भी आभूषणों से सुसजित हैं। इन्द्राणी के दाएं-बाएं एक-एक चंवरधारी प्रतिमा चंवर होते दिखाये है। इन्द्राणी बाएं तरफ व कुबेर दाएं तरफ बनाये गये है । कुबेर रत्नों की वर्षा कर रहे है। कुबेर की पृष्ठभूमि में पांडुकशिला पर भगवान के कलशाभिषेक को दर्शाया है । इन्द्राणी की पृष्ठभूमि में अशोक वृक्ष व तीर्थंकर का अंकन है । कुबेर की प्रतिमा खण्डित अवस्था में है । इन्द्राणी के हाथ खण्डित हैं । मुख भी दोनों प्रतिमाओं का आंशिक रूप से खण्डित हो रहा है, इन्द्राणी व कुबेर के पीछे भामण्डल रेखा से उकेरा गया है| इन्द्राणी का दायां पैर जो नीचे है, वह पद्मपीठ पर रखा है। (चित्र संख्या - 2 )
तप कल्याणक -
तीर्थंकर प्रभु वैराग्य होने पर वस्त्रादि का त्याग करके आत्म ध्यान में लीन हो जाते हैं । तप कल्याणक को प्रतिबिम्बित करती तीसरी गुफा में तीर्थंकर भगवान की लगभग 3-4 फुट लम्बी खडगासन प्रतिमा तपश्चर्या करते दर्शायी है। प्रतिमा को आसन पर नहीं बनाया है, जिससे वह तप कल्याणक को ही दर्शाती है । ऊपर छत्र के लिए छोड़ा गया पाषाण है, दो चंवरधारी चंवर ढोते दर्शाये गये हैं, भामण्डल आंशिक रूप से उकेरा गया है । (चित्र संख्या - 3 )
ज्ञान कल्याणक
तीर्थंकर भगवान के घोर तपश्चर्या करने के पश्चात् ज्ञानावरणी, दर्शनावरणी, मोहनीय व अन्तराय कर्म के नष्ट होने पर केवल ज्ञान की प्राप्ति होती है व देव समवशरण की रचना करते हैं । ज्ञान कल्याणक की रचना को चौथी गुफा में प्रतिबिम्बित किया है। लगभग साढ़े चार फीट पद्मासन मुद्रा में छत्र, भामण्डल, सिंहासन, चंवर ढोते चंवरधारी पृष्ठभाग में दो जोड़े युगल देवों के दर्शाये गये हैं । सिंहासन पर दो शेर अंकित है, जिसके आधार पर विद्वान तीर्थंकर महावीर के ज्ञान कल्याणक को मानते हैं । (चित्र संख्या - 4 )
मोक्ष कल्याणक
आठों कर्मों के नष्ट होने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है । मोक्ष कल्याणक प्रतीक स्वरूप पांचवीं गुफा में दर्शाया है। मुख्य प्रतिमा लगभग 7-8 फीट की खड़गासन में है, प्रतिमा के दाएं-बाएं 2 फीट की पद्मासन मुद्रा में तीर्थकर प्रतिमा है, जिसमें दोनों ओर सिद्धकूट के चिन्ह अंकित हैं। इन प्रतिमा समूह को मन्दिर में स्थापित प्रतिमा समूह के समान बनाया है । (चित्र संख्या - 5 )
अतः यह सम्पूर्ण श्रंखला क्रमबद्ध रूप से तीर्थंकर के पांचों कल्याणको दर्शाने में अहम् भूमिका निभा रही है । वास्तव में ग्वालियर दुर्ग कला स्थापत्य की तीर्थस्थली व अनमोल धरोहर है ।
L
-
अर्हत् वचन 23 (3), 2011
,
45