Book Title: Arhat Vachan 2011 07
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 36
________________ में कितना विस्मयकारी है ? इन नव पदार्थों के 115 भेद, प्रभेद और उपभेदों का अवलोकन तो उन्हें खोज निकालने वाले व्यक्ति के अथाह ज्ञान और उसकी पारदर्शी दृष्टि के समक्ष जैसे सबको परास्त करता सा लगता है। जैन दर्शन विज्ञान है, इसीलिए उसमें जीव के साथ अजीव का भी इतना विशद विवेचन है। उसके दीर्घकाय होने का भी यही रहस्य है। विज्ञान अपनी खोज को समाप्ति तक चलता रहता है। तीर्थंकरों की दृष्टि भी छोटे-बड़े आकार पर नहीं, ज्ञान के अंतिम तार्किक निष्कर्ष पर रही। भौतिक, रसायन और प्राणिशास्त्र और इनकी शाखाओं और उपशाखाओं की आकाश गंगा में आदमी खो जाता है, जैन दर्शन की थाह भी उसी तरह सबके लिए सुगम नहीं बनी। विज्ञान का अपना कलेवर होता है। जैन धर्म का विस्तार भी उसका अपना नहीं, विज्ञान का है। भगवान महावीर ने तो उसे केवल खोजा था, गढ़ा नहीं। एलिजाबेथ शार्प ने जिन 'फ्लॉज' की ओर इंगित किया है, वस्तुतः वह जैन दर्शन के विज्ञान की ही तरह, सर्वगम्य और सर्वग्राह्य न बन पाने के कारणों की मीमांसा है। संदर्भ स्थल - 1. The Jain Philosophy is an almost perfect one, and the flaws in it are due rather to the largeness of the subject discused than to the philosophy. - Elizabeth Sharp 2. We give the name scientist to the type of man who has felt experiment to be a means guiding him to search out the deep truth of life, to lift a veil from its fascinating secrets, and who, in this pursuit, has felt arising within him a love for the mysteries of nature. so passionate as to annihilate the thought of himself. - Maria Montessory 3. Science - Systematic Knowledge of the Physical or Material world gained through abservation and experimentation - The Random House Dictionary of the English Language. प्राप्त: 18.06.10 विगत वर्षों की भांति वर्ष 21(2009) में प्रकाशित अर्हत् वचन के सभी अंकों में से 3 सर्वश्रेष्ठ आलेखों के चयन हेतु गठित त्रिसदस्यीय निर्णायक मण्डल की अनुशंसा के आधार पर निम्नवत् अर्हत् वचन पुरस्कार घोषित किये गये है। इसके अंतर्गत प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय पुरस्कार प्राप्त आलेख के लेखकों को क्रमशः रुपए 5000, 3000 एवं 2000 की नकद राशि शाल, श्रीफल एवं प्रशस्ति से सम्मानित किया जायेगा। प्रथम पुरस्कार Samayasāra Gathā 3 and the Modern Science Prof. P.M. Agrawal, Udaipur द्वितीय पुरस्कार Lure of Large Numbers Dr. R.S. Shah, Pune तृतीय पुरस्कार Development of Mathematical Science Including Jaina Mathematics in the Periphery of Patalīputra Dr. Parmeshver Jha, Supaul वर्ष 2010 के पुरस्कार शीघ्र घोषित किये जायेगे। 2011 में भी यह योजना गतिमान है। वर्ष 2009 एवं 2010 का पुरस्कार समर्पण समारोह अक्टूबर -2011 में आयोजित किया जायेगा। डॉ. अजित कासलीवाल डॉ. अनुपम जैन प्रकाशक सम्पादक 34 अर्हत् वचन, 23 (3),2011

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