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वर्ष - 23, अंक - 3, जुलाई-सितम्बर - 2011, 25-28
भाषा विज्ञान -नारायण लाल कछारा*
कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर
जीव के शरीर की रचना बहुत अद्भुत है। उसका स्थूल शरीर हमें दिखाई देता हैं, परंतु इसके अतिरिक्त जीव के सूक्ष्म शरीर भी होते हैं जो सामान्य जन को दिखाई नहीं देते । सर्वज्ञों ने बताया है कि स्थूल शरीर की अवस्थिति और क्रियाएं सूक्ष्म शरीर पर आधारित हैं। शरीर की समस्त क्रियाएं जिन्हें जैन दर्शन में मन, वचन, काय योग कहा गया है, कार्मण शरीर से संचालित और निर्धारित होती हैं। यह एक पूरा विज्ञान है जिसकी विस्तृत विवेचना जैन दर्शन में प्राप्त है। आधुनिक विज्ञान ने स्थूल शरीर के बारे में बहुत महत्वपूर्ण खोजें की है परंतु वे इस शरीर का संबंध सूक्ष्म शरीर से नहीं जोड़ पाए हैं। जब तक इस संबंध को नहीं समझा जाता है, स्थूल शरीर का ज्ञान अधूरा है।
जैन दर्शन में सूक्ष्म शरीर की रचना वर्गणा से मानी गई है।' वर्गणा परमाणुओं का समूह है, परमाणु ऊर्जा की सबसे छोटी अखण्ड, अविभाजित इकाई है जो विज्ञान को ज्ञात एटम कणों से अनन्त गुणा छोटी है। वर्गणाएं दो प्रकार की मानी गई है, एक सूक्ष्म जिनमें चार स्पर्श होते हैं और भारहीन है, तथा दूसरी बादर अष्टस्पर्शी जिनमें भार होता है । सूक्ष्म शरीर चतुःस्पर्शी भारहीन वर्गणाओं से बना होता हैं, जो ऊर्जा रूप होती हैं। ये वर्गणाएं अष्टस्पर्शी वर्गणाओं से बहुत अधिक शक्तिशाली होती है। स्थूल शरीर सबसे बड़ी अष्टस्पर्शी वर्गणा से बना है।
सूक्ष्म वर्गणाएं जो जीव के उपयोग में आती हैं, पाँच हैं : 1. आहार वर्गणा
2. तैजस वर्गणा 3. भाषा वर्गणा
4. मनो वर्गणा 5. कार्मण वर्गणा
आहार वर्गणा जैव विद्युत के रूप में स्थूल शरीर की रचना में काम आती है। तैजस वर्गणा प्राण शरीर के रूप में शरीर में प्राणों का संचार करती है, मनो वर्गणा मन का निर्माण करती है और कार्मण वर्गणा कार्मण शरीर को बनाती है जो शरीर की समस्त क्रियाओं का नियामक है। भाषा वर्गणा के बारे में हमारा ज्ञान अभी तक स्पष्ट नहीं है, और प्रस्तुत लेख में इसी प्रश्न पर विचार करेंगे।
* प्राध्यापक एवं पूर्वनिदेशक, 55, रवीन्द्र नगर, उदयपुर (राज.)