Book Title: Arhat Vachan 2011 07
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 29
________________ 2 - एक अर्थवाक् और दूसरा शब्दवाक् । परा, पश्यन्ति, मध्यमा और वैखरी ये चार वाक् की स्थितियां अथवा स्वरूप हैं। हमारी भाषा, बोलचाल की भाषा वैखरी कहलाती है। वैखरी, शब्द का स्थूल रूप है और लौकिक व्यवहार का कारण बनता है। वाक् के चारों रूप परा, पश्यन्ति, मध्यमा और वैखरी हमारे शरीर के भीतर भी है । परावाक् का स्थान मूलाधार है। हमारी सारी अभिव्यक्तियां मूलाधार से ही उठती हैं । शब्द की उत्पत्ति वर्णों से होती है और वर्ण की उत्पत्ति नाद से है। नाद अव्यक्त होता है और वर्ण व्यक्त । नाद ही प्रकाश पैदा करता है। आत्मा बुद्धि के द्वारा अर्थों को लेकर मन के साथ बोलने की इच्छा से युक्त होती है (परावाक्)। मन शरीर की अग्नि में आघात करता है। यह आघात वायु को प्रेरित करता है (पश्यन्ति), इसमें वक्षस्थल में स्वर की उत्पत्ति होती है (मध्यमा) और कण्ठ से वैखरी नामक शब्द प्रकट होता है। शब्द का अर्थ से संबंध है और अर्थ का ज्ञान से। इस प्रकार हम पाते हैं कि शब्द के पीछे चार शक्तियां काम कर रही हैं - आत्मा, बुद्धि, नाद और मन । नाद की तुलना भाषा वर्गणा से की जा सकती है। चूंकि शब्द आत्मा की अभिव्यक्ति है इसलिए ज्ञानात्मक है। शब्द में आत्मा के साथ मन और बुद्धि का योग है और नाद की सहायता है। विज्ञान के अनुसार भाषा का प्रसारण दो प्रकार से होता है। प्रथम, सामान्य तौर पर भाषा या ध्वनि, हवा या अन्य माध्यम में कंपन पैदा करती है जो तरंग रूप में प्रवाह को प्राप्त होकर एक स्थान से दूसरे स्थान को पहुंचती है। दूसरी विधि में भाषा कंपनों को विद्युत तरंगों में बदल दिया जाता है और इन विद्युत तरंगों को अन्य शक्तिशाली केरियर तरंगों की सहायता से प्रसारित किया जाता है। ये केरियर तरंगें विद्युत चुंबकीय रेडियों तरंगें होती हैं। दूसरे स्थान पर जहां भाषा या ध्वनि को सुनना होता है विद्युत तरंगों को पुनः भाषा कंपनों में बदल दिया जाता है। इस विधि से ध्वनि को अंतरिक्ष में बहुत दूर तक पहुंचाया जा सकता है। वैज्ञानिक सुदूर अंतरिक्ष से आने वाले ध्वनि संकेतों को भी ग्रहण कर लेते हैं। शब्द पौद्गलिक, मूर्त और अनित्य है। शब्द का अर्थ है - पुद्गलों के संघात और विघात से होने वाला ध्वनि परिणाम । असंबंधित पुद्गलों का संबंध होने से और संबंधित पुद्गलों का संबंध विच्छेद होने से शब्द का जन्म होता है। शब्द के तीन भेद है - जीव शब्द, अजीव शब्द और मिश्र शब्द । जीव के द्वारा जो बोला जाता है, वह जीव शब्द है, यह आत्म प्रयत्न परिणाम है। वह भाषा या संकेतमय होता है। अजीव शब्द केवल अव्यक्त ध्वन्यात्मक होता है। मिश्र शब्द दोनों के संयोग से होता है। शब्द के दो भेद हैं - प्रायोगिक और वैस्त्रसिक । जो शब्द प्रयत्नजन्य है उसे प्रायोगिक कहते हैं। वह भाषात्मक और अभाषात्मक दोनों है। कोई भी प्राणी जब बोलने का प्रयत्न करता है तब वह सबसे पहले भाषा वर्गणा के परमाणु स्कंधों को ग्रहण करता है। उन्हें भाषा रूप में परिणत करता है और उसके पश्चात् उनका विसर्जन करता है। इस विसर्जन को भाषा कहते हैं । शब्द गतिशील है, इसलिए वक्ता के मुंह से निकलते ही लोक में फैलने लगता है। शब्द और भाषा में अंतर स्पष्ट होना चाहिए। संकेतमय या अर्थमय शब्द भाषा है। ये शब्द जीव शब्द या मिश्र शब्द, जैसे वाद्य यंत्र ही, हो सकते हैं , अजीव शब्द नहीं। भाषा वर्गणा केवल जीव ही ग्रहण करता है, अजीव नहीं। वाद्य यंत्र के प्रयोग में भी जीव ही भाषा वर्गणा ग्रहण करता है, अर्हत् वचन, 23 (3), 2011

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