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वर्ष - 23, अंक - 3, जुलाई-सितम्बर - 2011, 29-34
सूक्ष्म से साक्षात्कार - जतनलाल रामपुरिया *
कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर
जैन धर्म एवं दर्शन की वैज्ञानिकता की चर्चा तो यत्र-तत्र-सर्वत्र होती है किन्तु प्रस्तुत आलेख में विदेशी समीक्षकों की दृष्टि एवं इसके कारणों पर प्रकाश डाला गया
- सम्पादक
लगभग अट्ठाइस-तीस वर्ष पहले की बात है। मेरे पिता जी स्व. श्रीचंद जी रामपुरिया के पास 57 व्यक्ति बैठे थे। वार्तालाप के मध्य नितान्त सहज भाव से पिताजी ने कहा - 'जैन धर्म पूर्णतः विज्ञान है। ' मैंने उनके उद्गार को उतने ही सहज भाव से अति श्रद्धा की अभिव्यक्ति मानकर विस्मृत कर दिया। चार-पांच वर्ष बाद उन्होंने फिर अपनी बात दोहराई - 'जैन दर्शन का आधार विज्ञान है। इसके विश्लेषण में सर्वत्र वैज्ञानिक पद्धति की झलक मिलती है।' मैं उस दिन भी उनके कथन को गंभीरता के साथ नहीं ले सका । समय बीता । एक दिन मैं उनके सामने बैठा एक पत्रिका देख रहा था। टेबल पर बहुत सी पुस्तकें खुली हुई थीं और पिताजी अपने अध्ययन में डूबे थे। पढ़ते-पढ़ते अनायास उन्होंने जैसे अपने आपको या फिर कमरे की दीवारों को ही संबोधित करते हुए कहा - Mahavira was a Scientist (महावीर एक वैज्ञानिक थे)' उस दिन मैं सोच में पड़ गया। मन में आया पिताजी कॉलेज में प्रथम दो वर्ष तक विज्ञान के छात्र रहे हैं । वकालत में भी उन्हें बड़ी प्रतिष्ठा मिली है। उनका सारा जीवन भारतीय दर्शनों के अध्ययन और लेखन में बीता है। वे जब बार-बार इस बात को कह रहे हैं तो मुझे उनके कथन की गहराई में उतरना चाहिए।
मैंने उनसे पढ़ने हेतु कुछ पुस्तकें मांगी। उन्होंने जो पुस्तकें दी वे सब जैन विद्वानों द्वारा लिखित थी। किंतु मेरा मन संशयग्रस्त था। मुझे लगा जैनेतर लोगों द्वारा लिखी पुस्तकों में ही तटस्थ विवेचन मिलेगा। दूसरे दिन मैंने पिताजी की लाइब्रेरी से दो पुस्तकें निकालीं। एक के लेखक थे बंगाल के जाने माने विद्वान डॉ. विमल चरण लॉ, दूसरे की लेखिका थीं इंग्लैंड की एक विदुषी एलिजाबेथ शार्प । इस लेखिका की अपनी पुस्तक के अंत में एक टिप्पणी, जो अगले पृष्ठ पर उद्धृत है, इस लेख को लिखने का निमित्त बनी।
एलिजाबेथ शार्प प्राचीन विद्याओं का अध्ययन करने हेतु भारत आई और कई वर्षों तक यहां रहीं। उन्होंने भारतीय दर्शन, औषधि, विज्ञान, योग आदि विषयों पर अनेक शोध-खोज पूर्ण पुस्तकें लिखी। लुजाक एंड कंपनी, लंदन द्वारा सन् 1938 में प्रकाशित उनकी एक पुस्तक का नाम है The great cremation ground (महाश्मशान)। इस शीर्षक की कल्पना के पीछे उनका आशय संभवतः 'निर्वाण' या 'मोक्ष' रहा हो । जो भी हो, मुझे इस अनूठे शीर्षक ने उक्त पुस्तक को पढ़ लेने का निमंत्रण दिया।
इस पुस्तक में विदुषी लेखिका ने जैन धर्म और उपनिषदों का संक्षिप्त मगर अत्यंत युक्तिपूर्ण
* एडवोकेट 15,नूरमल लोहिया लेन, कोलकाता-700007