Book Title: Arhat Vachan 2011 07
Author(s): Anupam Jain
Publisher: Kundkund Gyanpith Indore

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Page 17
________________ वर्ष - 23, अंक - 3, जुलाई-सितम्बर - 2011, 15-23 दिगम्बर जैन मुनि आर्यिकाओं की वंदना / विनय । प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चन्दनामती* कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर 1 kjkdk दि. जैन धर्म में आर्यिकाओं की महाव्रती के रूप में श्रद्धापूर्वक वन्दना करने की सुदीर्घ परम्परा है। अपने अध्ययन। अनुसंधान कार्य के संदर्भ में जैन विद्या की सभी शाखाओं के अध्येताओं को प्रायः विशेषतः वर्षायोग में मुनि/आर्यिकाओं के पास शंका समाधान अथवा संदर्भो के संकलन हेतु जाने का अवसर प्राप्त होता है। सभी अनुसंधाताओं के पास आगमिक प्रमाण एवं त्वरित संदर्भ उपलब्ध रहें एवं आगम के परिप्रेक्ष्य में उनकी भावना बलवती हो इसी भावना के साथ वर्षायोग के प्रारंभ में यह आलेख प्रस्तुत है । - सम्पादक भारतदेश की पवित्र वसुन्धरा पर जैन शासन के अनुसार मुनि-आर्यिका, क्षुल्लक-क्षुल्लिका रूप चतुर्विध संघ परम्परा की व्यवस्था अनादिकाल से चली आ रही है। उनमें जहाँ दिगम्बर मुनियों को धर्मेश्वर के अंश कहकर सम्बोधित किया गया है, वहीं आर्यिका माताओं को "सद्धर्मकन्या' संज्ञा प्रदान की गई है। यथा r«k ÁR; {k/kek2 k] /ke? kkd ko bokeYWKA Okl Urs ojnL;kx oj nŪkkfn; "fxu%AA149AA' अर्थात् वहाँ (भगवान नेमिनाथ के समवसरण में) उत्कृष्ट वर को प्रदान करने वाले भगवान नेमिनाथ के आगे-समक्ष वरदत्त को आदि लेकर अनेक मुनि सुशोभित थे, जो धर्म के स्वरूप को प्रत्यक्ष करने वाले एवं अत्यन्त निर्मल धर्मेश्वर के अंश जान पड़ते थे।।149 ।। ghn; k{kkfür 'kkur; kfn] xqkYKrl å nA I eR; "i fo' KUR; K;KI I eru;k; FkkAA151AA? उसके बाद तीसरी सभा में लज्जा, दया, क्षमा, शान्ति आदि गुणरूपी सम्पत्ति से सुशोभित आर्यिकाएँ विराजमान थीं, जो समीचीन धर्म की पुत्रियों के समान जान पड़ती थीं।।151 ।। मुनिराजों को सैद्धान्तिक व्यवस्थानुसार छठा-सातवाँ गुणस्थान माना जाता है और आर्यिकाओं को पंचमगुणस्थानवर्ती कहा गया है। इससे यह अर्थ नहीं निकालना चाहिए कि आर्यिकाएँ श्रावक-श्राविकाओं के समान देशव्रती श्राविका हैं। चरणानुयोग के ग्रंथों में मुनियों को सकलसंयमी, महाव्रती कहा है और आर्यिकाओं को उपचार महाव्रती कहा है, जैसा कि आचारसार ग्रंथ में श्री आचार्य वीरनन्दी सिद्धान्तचक्रवर्ती ने लिखा है ns korkflor rkl kekj"; Urs cakrra egkorkfu ITtkfrKIR; FkejpkjrAA89AAS अर्थात् बुद्धिमान आचार्यों के द्वारा उन आर्यिकाओं की सज्जाति की ज्ञप्ति के लिए देशव्रतों के साथ उपचार से महाव्रतों का आरोपण किया जाता है। * संघस्थ, गणिनी प्रमुख आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी, सम्पर्क : दि. जैन त्रिलोक शोध संस्थान, जम्बूद्वीप हस्तिनापुर (मेरठ) 250404

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