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हमें स्पष्टरूप से समझ लेना चाहिए कि कृतिकर्मपूर्वक वंदना तो तब की जाती है जब आचार्य / साधु शांतचित्त विराजमान हों।
पद्मपुराण में कहा गया है
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अर्थात् जो सामने आते मुनि को देखकर अपना आसन नहीं छोड़ता है तथा उन्हें देखकर उनका अपमान करता है, अर्थात् सम्मान, नमोस्तु आदि नहीं करता है, वह मिथ्यादृष्टि कहलाता है। अर्थात् साधु को देखने मात्र से अपना स्थान छोड़कर खड़े होना एवं नमोस्तु करना सम्यग्दृष्टि का लक्षण है। साधुजन आसन ग्रहण कर लें, तभी उन्हें नमोस्तु किया जाये, यह आगम से भी विरुद्ध ठहरता है। अतः आगम के रहस्य को सही प्रकार से हृदयंगम करना एवं सही प्रकार से प्रस्तुत करना चाहिए । vif bilk ekrivadh omuk dk 'Woh Aek. &
आर्यिका माताजी की वंदना करना एवं वंदना हेतु 'वंदामि' शब्द का प्रयोग करना सम्पूर्ण दिगम्बर जैन समाज में व्याप्त है। यह शास्त्रीय आधार से है। श्री इंद्रनंदि आचार्य विरचित 'नीतिसार समुच्चय' में 'मुनि आदि को नमस्कार की विधि देखें
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टीका-निर्ग्रन्धानां यतीनां परस्परं नमोऽस्तु इतिवाक्येनाचरेत्। आर्यिकाणां साध्वीनाम् अन्योन्यम् वंदना स्यात् वन्देऽहमिति वाक्येन संवदेत् । उत्तमस्य श्रावकस्य वानप्रस्थस्य परस्परं उच्चैः स्पष्टम् । इच्छाकारोऽस्तु । इच्छामि इतिवाक्येन चाभिधीयते व्यवह्रियते नियम्यते, अहं भवन्तमिष्टं पूज्यं गुरुवदनुमेने | |51||
अर्थात् निर्ग्रन्थ मुनिराजों को नमस्कार करते समय 'नमोस्तु' कहना चाहिए। आर्यिकाओं को 'वंदना-वंदामि' कहना चाहिए और उत्तम श्रावक अर्थात् उद्दिष्टत्याग नामक ग्यारहवीं प्रतिमाधारी श्रावकों को 'इच्छामि' वा इच्छाकार कहना चाहिए।
आर्यिका माताजी की वंदना की बात शास्त्रोक्त ही है। अन्य ग्रंथों में भी देखें
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अर्थात् गुरुओं को "नमोऽस्तु ब्रह्मचारियों को "वंदना" साधर्मियों को "इच्छाकार" और आर्यिकाओं को "वंदामि" करें | 186 ||
यहाँ साधर्मी शब्द से उत्कृष्ट श्रावक ऐलक, क्षुल्लक क्षुल्लिका का पद विवक्षित है उन्हें इच्छाकार या इच्छामि कहकर नमस्कार किया जाता है तथा क्रम की विवक्षा में ब्रह्मचारी, साधर्मी के बाद आर्यिकाओं को लिया है सो यह क्रम भी पद की अपेक्षा विवक्षित नहीं है। क्योंकि मुनि के बाद आर्यिका पुनः ऐलक क्षुल्लक क्षुल्लिका, उसके बाद ब्रह्मचारी का क्रम आता है।
इस प्रकार जैन शासन के चतुर्विध संघ (मुनि - आर्यिका - क्षुल्लक - क्षुल्लिका) की समाचार विधि एवं नमस्कार करने की विधि को यहाँ संक्षेप में प्रस्तुत किया गया है। आप सभी इस नमस्कार पद्धति को अपनाकर सन्तों के आशीर्वाद से अपने जीवन को मंगलमयी बनावें, यही शुभेच्छा है।
अर्हत् वचन, 23 (3), 2011