Book Title: Apath ka Path Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Jain Vishva BharatiPage 13
________________ चक्षुष्मान् ! कुशल का कौशल मार्ग की खोज सत्य खोज है। मार्ग वह है, जिस पर चलकर मनुष्य अपने लक्ष्य तक पहुँच जाता है । द्रष्टा होने का एक मार्ग है, उसका अवबोध वीतराग से है। जिसने इस मार्ग पर चरण रखा, वह कुशल हो गया । कुशल का कौशल तब बोलता है, जब वह रोटी खाए, किन्तु रोटी उसे न खाए । पानी पीए किन्तु पानी उसे न पीए । एक अपश्यक् भी रोटी खाता है और पश्यक् भी खाता है । एक अपश्य भी पानी पीता है और पश्यक् भी पानी पीता है। दोनों मनुष्य । रोटी और पानी — दोनों पदार्थ । दोनों के बीच भेदरखा खींचता है— लेप रोटी के साथ प्रिय या अप्रिय संवेदन जुड़ा, रोटी केवल रोटी नहीं रही, वह लेप बन गया । कुशल का कौशल यही है कि वह राग-द्वेष की संवेदना से ऊपर उठा होता है । 12 उसके लिए रोटी केवल रोटी रहती है, लेप नहीं बनती । आचारांग का कुशल कहीं लिप्त नहीं होता । एस मग्गे आरिएहिं पवेइए । जहेत्थ कुसले गोवलिपिज्जासि त्ति बेमि । 1 जुलाई, 1993 राजलदेसर Jain Education International For Private & Personal Use Only अपथ का पथ www.jainelibrary.orgPage Navigation
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