Book Title: Apath ka Path
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 54
________________ कौन करता है दुःख का सृजन चक्षुष्मान् ! हम दुःख को जानते हैं । जो प्रतिकूल संवेदन है, वह दुःख है— इस परिभाषा को भी जानते हैं । इसका निष्कर्ष है - हम व्यवहार को जानते हैं, वास्तविकता को नहीं जानते । क्या दुःख को पैदा करने वाला तत्त्व दुःख नहीं है ? क्या उसके बिना प्रतिकूल संवेदन पैदा होता है ? यदि होता है तो इस दुनिया में कोई सुखी हो ही नहीं सकता । अध्यात्म की सीढ़ियों पर आरोहण करने वाला प्रतिकूल परिस्थिति में भी दुःखी नहीं बनता और इसलिए नहीं बनता कि उसने दुःख पैदा करने वाले दुःख को क्षीण कर दिया । प्रतिकूल संवेदन अहित का सृजन करता है, यह नियम नहीं है । किन्तु दुःख का बीज अथवा कर्म अहित का सृजन करता है, यह सचाई है। इसी सचाई को प्रकट करने के लिए भगवान् महावीर ने कहालोयंसि जाण अहियाय दुक्खं । तुम जानो – इस लोक में दुःख अहित के लिए होता है । 1 जनवरी, 1997 सुजानगढ़ अपथ का पथ Jain Education International For Private & Personal Use Only 熊 53 www.jainelibrary.org

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