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कौन करता है दुःख का सृजन
चक्षुष्मान् !
हम दुःख को जानते हैं ।
जो प्रतिकूल संवेदन है, वह दुःख है— इस परिभाषा को भी जानते हैं ।
इसका निष्कर्ष है - हम व्यवहार को जानते हैं, वास्तविकता को नहीं जानते ।
क्या दुःख को पैदा करने वाला तत्त्व दुःख नहीं है ? क्या उसके बिना प्रतिकूल संवेदन पैदा होता है ?
यदि होता है तो इस दुनिया में कोई सुखी हो ही नहीं सकता ।
अध्यात्म की सीढ़ियों पर आरोहण करने वाला प्रतिकूल परिस्थिति में भी दुःखी नहीं बनता और इसलिए नहीं बनता कि उसने दुःख पैदा करने वाले दुःख को क्षीण कर दिया ।
प्रतिकूल संवेदन अहित का सृजन करता है, यह नियम नहीं है । किन्तु दुःख का बीज अथवा कर्म अहित का सृजन करता है, यह सचाई है।
इसी सचाई को प्रकट करने के लिए भगवान् महावीर ने कहालोयंसि जाण अहियाय दुक्खं ।
तुम जानो – इस लोक में दुःख अहित के लिए होता है ।
1 जनवरी, 1997
सुजानगढ़
अपथ का पथ
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熊
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