Book Title: Apath ka Path
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

Previous | Next

Page 52
________________ ASO SH दोहरी मूर्खना चक्षुष्मान् ! आचार्य पढ़ा रहे हैं । शिष्य पढ़ रहा है। उसने पाठ का अशुद्ध उच्चारण किया । आचार्य-तुम गलत उच्चारण कर रहे हो। शिष्य-आपने ऐसा ही बताया था। आचार्य-तुमने प्रमाद किया, ध्यानपूर्वक नहीं सुना, यह तुम्हारी पहली मूर्खता है और सावधान करने पर अपने प्रमाद को स्वीकार नहीं कर रहे हो, यह तुम्हारी दूसरी मूर्खता है। व्यवहार की भूमिका में पहला प्रमाद दूसरे प्रमाद को निमंत्रण देता है। भगवान् महावीर ने इस भूमिका को सामने रखकर ही प्रवचन किया । वह जीवन की अनेक घटनाओं पर लागू होता है। उनकी वाणी है कटु एवं अविजाणओ, बितिया मंदस्स बालया। जो अकरणीय का आसेवन कर लेता है और पूछने पर 'मैंने नहीं किया' यह कहकर अस्वीकार कर देता है, यह उस मंद मति की दोहरी मूर्खता है। 1 नवम्बर, 1996 जैन विश्व भारती अपथ का पथ 51 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66