Book Title: Apath ka Path
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 53
________________ - - जागना है ज्ञानी. चक्षुष्मान् ! कौन सो रहा है और कौन जाग रहा है ? प्रश्न चिरंतन है। उत्तर भी चिरंतन है। उस चिरंतन को नए संदर्भ में समझने का प्रयत्न करना जरूरी है। जो मनुष्य अपनी सुख-सुविधा के लिए दूसरों को पीड़ा देता है, सताता है, सतप्त करता है और मार डालता है, वह अज्ञानी है। अज्ञानी आदमी सो रहा है। दिन में भी सो रहा है, धोली दुपहरी में भी सो रहा है। उसके लिए जैसा दिन वैसी रात और जैसी रात वैसा दिन। दोनों समान। जो मनुष्य सब जीवों के प्रति आत्म-तुल्य व्यवहार करता है, अपनी तुला से तोलता है और अपने मीटर से नापता है, शरीर, जाति, वर्ण आदि बाहरी परिवेशों से मुक्त होकर अपनी और अन्य की आत्मा में समानता की अनुभूति करता है, वह ज्ञानी है। वह चौबीस घंटे जागता है। ज्ञानी नींद में भी जागता है, रात में भी जागता है। इसी सच्चाई को अभिव्यक्त करने के लिए महावीर ने कहा सुत्ता अमुणिणो सया, मुणिणो सया जागरंति अज्ञानी सदा सोते हैं, ज्ञानी सदा जागते हैं । - 1 दिसम्बर, 1996 जैन विश्व भारती - WOL (GRA अपथ का पथ 52 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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