Book Title: Apath ka Path Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Jain Vishva BharatiPage 58
________________ दुर्लध्य है काम चक्षुष्मान् ! ___ कामना की शक्ति अमाप्य है। वह सबका अतिक्रमण करती है। उसका अतिक्रमण करना हर किसी के वश की बात नहीं है। हर प्राणी उससे संचालित है । वह प्राणी का लक्षण बनी हुई है। जिसमें इच्छा है, कामना है, वह प्राणी है। भूख की इच्छा होती है तब खाता है। पानी पीने की इच्छा होती है तब पानी पीना पडता है। प्रत्येक इन्द्रिय की अपनी-अपनी कामना है। इन्द्रिय चेतना के स्तर पर जीने वाला व्यक्ति उनकी इच्छा पूर्ति कर संतुष्टि का अनुभव करता है। कामना की अधीनता सबको मान्य है। इस व्यवहार सत्य को सामने रखकर महावीर ने कहा- जिसे आत्मा की अनुभूति प्राप्त हो जाती है, वह व्यक्ति काम का अतिक्रमण कर सकता है, हर कोई नहीं कर सकता। दुपरिचया इमे कामा, णो सुजहा अधीरपुरिसेहिं । अधीर पुरुष के लिए काम दुर्लध्य है। कामा दुरतिक्कमा काम का अतिक्रमण करना सरल नहीं है। 1 जुलाई, 1997 गंगाशहर अपथ का पथ 57 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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