Book Title: Apath ka Path Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Jain Vishva BharatiPage 56
________________ - दुःख है संवेदन में चक्षुष्मान् ! सुख और दुःख अहेतुक नहीं हैं। सुख का भी हेतु है और दुःख का भी हेतु है। एक आदमी तत्ववेत्ता के पास गया, बोला-'दुःख क्यों है ? मुझे कोई आदमी नहीं मिला, जो दुःखी न हो, प्रतिकूल संवेदन न करता हो।' तत्ववेत्ता-'क्या समाज में हिंसा नहीं है ? 'है।' "हिंसा दुःख का हेतु है । हिंसा हो और दुःख न हो, यह संभव नहीं है।' भय, आतंक, हत्या ये सारे दुःख हिंसा से जन्मे हुए हैं। हिंसा का संस्कार अतीत और दीर्घकालीन अतीत से जुड़ा हुआ है । वह भी दुःख पैदा करता है। दुःख घटना में नहीं है, वह संवेदन में है। हिंसा का संस्कार प्रतिकूल संवेदन पैदा करता है और आदमी दुःखी बन जाता है। इस तत्व दर्शन को ध्यान में रखकर महावीर ने कहा ___ आरंभजं दुक्खमिणं ति णच्चा । दुःख हिंसा से उत्पन्न है, यह जानकर मनुष्य हिंसा का परित्याग करे। 1 अप्रैल, 1997 कालू अपथ का पथ 55 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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