Book Title: Apath ka Path Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Jain Vishva BharatiPage 57
________________ 3 अमर है आल्मा का विढेह अस्तिल्व चक्षुष्मान् ! अमर होने की आकांक्षा मनुष्य की शाश्वत आकांक्षा है। कोई भी देहधारी आज तक अमर हुआ नहीं और यह भविष्य वाणी करना एक जटिल काम है—कोई भी देहधारी अमर होगा। देह एक पौद्गलिक रचना है और कोई भी पौद्गलिक रचना नित्य नहीं है। अमर वह हो सकता है जो मरण के हेतुओं को आशंका की दृष्टि से देखता है। जिसमें देहासक्ति है, देहाध्यास है वह अमर की भांति आचरण करता है-अमरायई महासड्डी। विदेह की साधना करने वाला अमरत्व की दिशा में प्रस्थान कर सकता है। देह मरण-धर्मा है। आत्मा अमर है। उसके विदेह अस्तित्व की कभी विच्युति नहीं होती। महावीर की वाणी में यह सत्य उजागर हुआ है माराभिसंकी मरणा पमुच्चति । जो मृत्यु से आशंकित रहता है, वह मृत्यु से मुक्त हो जाता है। - 1 जून, 1997 गंगाशहर 56 अपथ का पथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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