Book Title: Apath ka Path
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 55
________________ अहेतुक नहीं है आतुरता चक्षुष्मान् ! आतुरता एक मनोदशा है। कोई व्यक्ति कामातुर है और कोई रोगातुर । " तुम ध्यान से देखो - आगे पीछे, दाए, बाएं आतुरता की एक श्रृंखला मिलेगी । आतुरता अहेतुक नहीं है। उसकी जन्म भूमि प्रमाद है । यदि हमारी दुनिया में आतुरता नहीं होती तो अप्रमत्त रहने की बात बुद्धि से परे नहीं होती । इन्द्रिय चेतना मनुष्य को प्रमाद की ओर ले जाती है । राग और द्वेष स्वयं प्रमाद हैं । प्रमाद ने मानवीय मस्तिष्क को विक्षेप दिया है । विक्षेप ने आतुरता पैदा की है। आतुरता ने अनेक समस्याओं को जन्म दिया है। इन सारी स्थिति को देखकर द्रष्टा ने कहा- -अप्रमत्त रहो। तुम स्वयं प्रमाद और उसने उत्पन्न आतुरता को नहीं देखोगे तब तक अप्रमत्त रहना कठिन होगा । 54 इसीलिए महावीर ने कहा 1 फरवरी, 1997 चाड़वास पासिय आउरे पाणे अप्पमत्तो परिव्वए । सुप्त मनुष्यों को आतुर देखकर वीर पुरुष निरन्तर अप्रमत्त रहे। - Jain Education International For Private & Personal Use Only OK अपथ का पथ www.jainelibrary.org

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