Book Title: Apath ka Path Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Jain Vishva BharatiPage 62
________________ - - लोक की विपश्यना करी चक्षुष्मान् ! लोक की विपश्यना करो, अपने शरीर की विपश्यना करो। लोक को तीन भागों में विभक्त कर लो-अधोलोक, उर्ध्वलोक और तिर्यक् लोक या मध्यलोक । शक्ति का विकास चाहते हो तो अधोलोक की विपश्यना करो। ज्ञान का विकास चाहते हो, चेतना के विविध प्रकोष्ठों को जागृत करना चाहते हो तो उर्ध्वलोक की विपश्यना करो । प्राण ऊर्जा का विकास चाहते हो तो मध्य लोक की विपश्यना करो। विपश्यना करने की विधि को जानो । चक्षु को संयत कर त्राटक अथवा अनिमेष प्रेक्षा का प्रयोग करो, लोक की विपश्यना करो। विपश्यना करने वाला लोक के अधोभाग को जान लेता है, ऊर्ध्व भाग को जान लेता है और मध्य भाग को भी जान लेता है। महावीर की इस वाणी का मर्म समझने का प्रयत्न करोआयतचक्खू लोगविपस्सी लोगस्स अहो भागं जाणई, उड्ढं भागं जाणई तिरियं भागं जाणई। संयत चक्षु लोकदर्शी होता है । वह लोक के अधोभाग को जानता है, ऊर्ध्व भाग को जानता है, तिरछे भाग को जानता है। - 1 फरवरी, 1998 नोखा अपथ का पथ 61 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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