Book Title: Apath ka Path Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Jain Vishva BharatiPage 65
________________ चक्षुष्मान् मतिमान् बनो । मतिमान् वह होता है, जिसमें परिज्ञा होती है, जो जानता है, हेय और उपादेय का विवेक करता है, जिसमें त्याग करने की क्षमता होती है, जो हेय को त्याग देता है । योग आसक्ति का जनक है। कहा- आसक्ति दुःख का ताना-बाना बुनती है। कुछ व्यक्ति हेय को छोड़कर फिर उसे पाने के लिए ललचाते हैं । इस मानसिक दुर्बलता को सामने रखकर भगवान महावीर ने मतिमान् बनी 9 जून, 1998 जैन विश्व भारती 64 मतिमान् परिज्ञा करे, जाने और हेय को त्यागे । त्यक्त के प्रति पुनः न ललचाए, लाल को न चाटे । Jain Education International सेमइयं परिण्णाय माय हु लालं पच्चासी । For Private & Personal Use Only अपथ का पथ www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 63 64 65 66