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चक्षुष्मान्
मतिमान् बनो ।
मतिमान् वह होता है, जिसमें परिज्ञा होती है, जो जानता है, हेय और उपादेय का विवेक करता है, जिसमें त्याग करने की क्षमता होती है, जो हेय को त्याग देता है ।
योग आसक्ति का जनक है।
कहा-
आसक्ति दुःख का ताना-बाना बुनती है।
कुछ व्यक्ति हेय को छोड़कर फिर उसे पाने के लिए ललचाते हैं । इस मानसिक दुर्बलता को सामने रखकर भगवान महावीर ने
मतिमान् बनी
9 जून, 1998 जैन विश्व भारती
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मतिमान् परिज्ञा करे, जाने और हेय को त्यागे । त्यक्त के प्रति पुनः न ललचाए, लाल को न चाटे ।
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सेमइयं परिण्णाय माय हु लालं पच्चासी ।
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अपथ का पथ
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