Book Title: Apath ka Path
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 63
________________ - - काम का जाल चक्षुष्मान् ! यह जन्म-मरण का चक्र कैसे चल रहा है ? प्राण एक योनि के बाद दूसरी योनि में कैसे पैदा होता है ? । इस जटिल प्रश्न का सरल सा उत्तर है- जन्म मरण के चक्र का हेतु है काम। काम कर्म का आकर्षण कर रहा है और कर्म एक गति से दूसरी गति में जाने का वाहन बन रहा है। प्राणी काम के जाल में फंसा हुआ है। किसी भी मछुआरे के पास इतना मजबूत जाल नही है। इससे मुक्त होने का उपाय है अनासक्ति के बिन्दु को पकड़ना । उसकी पकड़ सचाई को समझने के बाद ही हो सकती है। महावीर की वाणी में उस सचाई का सूत्र है गढिए अणुपरियट्टमाणे। काम में आसक्त पुरुष अनुपरिवर्तन कर रहा है। 1 अप्रेल, 1998 जैन विश्व भारती FINO) - 62 अपथ का पथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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