Book Title: Apath ka Path
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 48
________________ चक्षुष्मान् ! उठो, प्रमाद मत करो - यह सीधा सरल उपदेश है । उठ गए हो अब प्रमाद मत करो - यह रहस्यपूर्ण सूत्र है । एक बार उठा और पराक्रम का द्वार बंद हो गया । अनुत्थित बन सकता है । रहेगा । रहस्यपूर्ण सूत्र मोह कर्म की सत्ता विद्यमान है। क्या पराक्रम को छोड़क उसके आसन को हिला सकोगे ? कभी संभव नहीं है हाथ हिलाते रहो, शैवाल को हटाते रहो, आकाश-द‍ होता हाथ को विश्राम मिलता है, शैवाल पुनः छा जाता है। क्या आकाश-दर्शन बंद नहीं होगा । इस रहस्य को समझाने के लिए महावीर ने कहा- उठ गए प्रमाद मत करो । 1 जुलाई, 1996 जैन विश्व भारती अपथ का पथ Jain Education International त्थित उट्टिए णो पमायए For Private & Personal Use Only अब 熊 47 www.jainelibrary.org

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