Book Title: Apath ka Path Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Jain Vishva BharatiPage 49
________________ अप्रमाद से होना है प्रमाद का विलय चक्षुष्मान् ! विष विष का औषध और कांटे से कांटे का उद्धार- यह सत्य है पर सार्वभौम नहीं। सापेक्ष सत्य की सीमा का ज्ञान हो तो आदमी उलझता नहीं। सापेक्ष को निरपेक्ष मान लेने पर सत्य असत्य को जन्म दे देता है। प्रमाद से प्रमाद का अंत नहीं होता और प्रमाद से प्रमाद कृत बंधन का अंत नहीं होता- यह आध्यात्मिक सत्य है। काम कथा और भोजन की कथा प्रमाद है। जैसे-जैसे इनकी पुनरावृत्ति होगी वैसे-वैसे काम और भोजन की आसक्ति बढ़ती जाएगी। उस आसक्ति को कम करने का उपाय है धर्म कथा, वैराग्य की कथा। प्रमाद कथा का प्रतिपक्ष है धर्म कथा । राग-कथा का प्रतिपक्ष है वैराग्य कथा । वह अप्रमाद है । उसके द्वारा ही प्रमाद को निरस्त किया जा सकता है। भगवान महावीर का अनुभव है एवं से अप्पमाएणं विवेगं किट्टति वेयवी। ज्ञानी मनुष्य जानता है—प्रमाद का विलय अप्रमाद से होता है। 1 अगस्त, 1996 जैन विश्व भारती 48 अपथ का पथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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