Book Title: Apath ka Path
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

Previous | Next

Page 34
________________ - लगाम को संभाली २१ चक्षुष्मान् ! मनुष्य की शाश्वत चाह है—दुःख से छुटकारा मिले। उसकी पूर्ति के लिए मनुष्य ने अनेक उपाय खोजे । उनकी एक श्रृंखला बन गई। आज भी खोज जारी है। दुःख है। उससे छुटकारा पाने के लिए नए-नए उपाय खोजे जा रहे हैं। पदार्थवादी अन्वेषकों ने दुःख को मिटाने वाले नए-नए पदार्थों को खोजा। अध्यात्मवादी पश्यकों ने देखा-दुःख का उपादान बाहर नहीं है। यदि वह बाहर होता तो पदार्थवादी लोग मनुष्य को पहले ही सुखी बना देते । पर ऐसा नहीं हुआ है। खोज की दिशा बदली । भीतर का दरवाजा खुला, देखा-दुःख का उपादान अपने भीतर है और वह है इन्द्रियों की उन्मुक्त प्रवृत्ति । घोड़ा दौड़ रहा है। लगाम हाथ में नहीं है। महावीर ने कहा- यदि दुःख से छुटकारा चाहते हो तो लगाम को संभालो । चेतना के उस जगत् में प्रवेश करो, जहां सुख-दुःख की भाषा को कोई नहीं जानता। महावीर के इस स्वर का पुनरुच्चार हैपुरिसा ! अत्ताणमेव अभिणिगिज्झ एवं दुक्खा पमोक्खसि । पुरुष ! स्वयं का ही निग्रह कर, ऐसे दुःख मुक्त होगा तू । - 1 मई, 1995 बीदासर E NO अपथ का पथ 33 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66