Book Title: Apath ka Path Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Jain Vishva BharatiPage 37
________________ कौन करना है धर्म ११ and - चक्षुष्मान् ! प्रश्न है-धर्म कौन करता है ? दुःखी अथवा सुखी ? एक अनुभव है-दुःखी धर्म करता है। सूक्त बन गयादुःख में सुमिरण सब करे, सुख में करै न कोय, जो सुख में सुमिरण करै, दुःख काहे को होय ॥ दूसरा अनुभव है—सुखी सम्पन्न आदमी ही धर्म कर सकता है। जो आर्त है, अभाव-ग्रस्त है, वह क्या धर्म करेगा ? दोनों में सत्यांश है। एकांतवादी एक सत्यांश को पकड़कर दूसरे सत्यांश का विखण्डन करता है । सत्यांश दुर्नय बन जाता है। वह सापेक्ष रहकर ही नय बन सकता है। नय अनेकान्त का एकान्त है किन्तु सापेक्षता के सूत्र से बन्धा हुआ वह सम्यक् दृष्टिकोण बन जाता है। इस सापेक्ष दृष्टिकोण के आधार पर महावीर ने कहा- दुःख से पीड़ित मनुष्य भी धर्म करता है और सुख से सम्पन्न मनुष्य भी धर्म करता है अट्टा वि संता, अदुवा पमत्ता। 1 अगस्त, 1995 जैन विश्व भारती - 36 अपथ का पथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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