Book Title: Apath ka Path
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 38
________________ POSE मन की बाहर मत जाने दी. १ चक्षुष्मान् ! तुम जागरूक रहो। मन को घर से बाहर मत जाने दो। वह बाहर जाकर भटक जाएगा। तुमने लक्ष्य बनाया है महान् होने का । तुम्हारी महानता स्वतंत्रता में है। तुम स्वतंत्र हो, जब मन घर में है। वह बाहर जाता है, तुम परतंत्र हो जाते हो, उसके पीछे-पीछे चलने लग जाते हो। वह पदार्थ में आसक्त होता है, तुम भी आसक्त बन जाते हो । वह तुम्हारे पीछे नहीं चलता, तुम उसके पीछे चलने लग जाते हो। यदि तुम्हें महान् बनना है, स्वतंत्र रहना है तो बहुत जागरूक रहो और मन को घर से बाहर मत जाने दो। महावीर का शिक्षा-पद यही उद्घोषित कर रहा है. जे महं अबहिमणे। मोक्षलक्षी पुरूष का घर संयम है। वह मन को असंयम की ओर न ले जाए। - 1 सितम्बर 1995 जैन विश्व भारती PO अपथ का पथ 37 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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