Book Title: Apath ka Path
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 44
________________ कहां है चेतना का आवास ? चक्षुष्मान् ! आयतन दो हैं । एक आत्मा, दूसरा शरीर । जो शरीर में रहता है, वह पदार्थ को सब कुछ मानता है। उसकी गति भोगवाद की दिशा में होती है। लोभ और संग्रह उसकी मुख्य प्रेरणा है । जो आत्मा में रहता है, वह पदार्थ को जीवन-यात्रा के निर्वाह का साधन मानता है, सब कुछ नहीं मानता । दृष्टिकोण का यह अंतर आवास का अंतर है । स्वयं परीक्षण करो - चेतना का आवास कहाँ है ? शरीर में है या आत्मा में ? यदि शरीर में है तो स्थान को बदलो । अपना आवास अपने घर में करो - आत्मा में करो । आत्मा में रहने वाले व्यक्ति का प्रस्थान त्याग की दिशा में होता है । उसकी प्रेरणा है संतोष और अपरिग्रह - ममत्व का विसर्जन । जो ममत्व का विसर्जन करता है, उसके लिए कोई मार्ग नहीं है । महावीर की वाणी है एगायतणरयस्स इह विप्पमुक्कस्स णत्थि मग्गे विरयस्स त्ति । जो एक आयतन में लीन है, ऐहिक ममत्व से मुक्त है, हिंसा से विरत है, उसके लिए कोई मार्ग नहीं है । 1 मार्च 1996 जैन विश्व भारती अपथ का पथ Jain Education International For Private & Personal Use Only 茶 43 www.jainelibrary.org

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