Book Title: Apath ka Path Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Jain Vishva BharatiPage 45
________________ FOR पदार्थ से मुक्त बनी १ चक्षुष्मान् ! पदार्थ दृश्य है, वह इह है, ऐहिक है। आत्मा अदृश्य है, वह पर है, आत्मिक है। इह के प्रति आसक्ति का अतिरेक है इसलिए स्व पर बना हुआ है। पदार्थ की दुनिया में बहुत मार्ग बने हुए हैं, किन्तु कोई भी मार्ग कांटों से खाली नहीं है और मंजिल तक पहुंचाने वाला नहीं है। स्पर्धा है, संघर्ष है, कलह और कदाग्रह की बहुलता है। इस मार्ग पर चलने वाला कोई निर्बाध नहीं है, सुरक्षित नहीं है। मार्ग होता है लक्ष्य तक पहुंचाने के लिए किन्तु यह मार्ग है लक्ष्य की प्रतिकूल दिशा में ले जाने के लिए। रहस्य की भाषा में कहा गया- इह अथवा पदार्थ से मुक्त बनो। तुम स्वयं मुक्त हो, पदार्थ के संसर्ग में आकर बंध गए हो।। उस बंधन का अनुभव करो, मुक्ति की आशंसा करो फिर तुम्हारे लिए कोई मार्ग नही होगा। यह स्वयं मंजिल है। मार्ग की कोई अपेक्षा नही है। इसी सत्य को ध्यान में रखकर महावीर ने कहा इह विप्पमुक्कस्स णत्थि मग्गे विरयस्स। जो ऐहिक ममत्व से मुक्त है, हिंसा से विरत है, उसके लिए कोई मार्ग नहीं है। - 1 अप्रैल, 1996 जैन विश्व भारती 44 अपथ का पथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 ... 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66