Book Title: Apath ka Path
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 39
________________ उपदेश नहीं है द्रुष्ठा के लिए 9 चक्षुष्मान् ! लक्ष्य तक पहुंचने के लिए आवश्यक है दिशादर्शन और अत्यावश्यक है पथ-दर्शन । जो पश्यक नहीं हैं, वह दिशा-दर्शन के बिना सही दिशा में नहीं जा सकता और सही पथ पर नहीं चल सकता। आचार्य पूर्व दिशा है । शिष्य उसमें सदा उदय और प्रकाश का अनुभव करता है। वह स्वयं अपथ है। उसमें से पथ का निर्माण होता है। जो प्रकाश का उद्गम स्त्रोत और पथ का निर्माता होता है, वह द्रष्टा होता है। उलट कर कहा जा सकता है- जो द्रष्टा होता है, वह प्रकाश का उद्गम स्त्रोत और पथ का निर्माता होता है। द्रष्टा के लिए कोई उपदेश नहीं है, दिशा-दर्शन और पथ-दर्शन नहीं है। जो समृद्धि का मार्ग बताए और स्वयं भीख मांगे, वह आस्था उत्पन्न नहीं कर सकता। आस्था वही उत्पन्न कर सकता है, जो यथावादी-तथाकारी होता है। इस भूमिका में उपदेश निरुद्देश्य हो जाता है। इसी सत्य को भगवान् महावीर ने इन शब्दों में कहा उद्देसो पासगस्स णत्थि। द्रष्टा के लिए कोई उपदेश नहीं है। 1 अक्टूबर, 1995 जैन विश्व भारती 38 अपथ का पथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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