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चक्षुष्मान् !
कुशल का कौशल
मार्ग की खोज सत्य खोज है।
मार्ग वह है, जिस पर चलकर मनुष्य अपने लक्ष्य तक पहुँच जाता है ।
द्रष्टा होने का एक मार्ग है, उसका अवबोध वीतराग से है। जिसने इस मार्ग पर चरण रखा, वह कुशल हो गया ।
कुशल का कौशल तब बोलता है, जब वह रोटी खाए, किन्तु रोटी उसे न खाए । पानी पीए किन्तु पानी उसे न पीए ।
एक अपश्यक् भी रोटी खाता है और पश्यक् भी खाता है । एक अपश्य भी पानी पीता है और पश्यक् भी पानी पीता है।
दोनों मनुष्य । रोटी और पानी — दोनों पदार्थ । दोनों के बीच भेदरखा खींचता है— लेप
रोटी के साथ प्रिय या अप्रिय संवेदन जुड़ा, रोटी केवल रोटी नहीं रही, वह लेप बन गया ।
कुशल का कौशल यही है कि वह राग-द्वेष की संवेदना से ऊपर उठा होता है ।
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उसके लिए रोटी केवल रोटी रहती है, लेप नहीं बनती । आचारांग का कुशल कहीं लिप्त नहीं होता ।
एस मग्गे आरिएहिं पवेइए । जहेत्थ कुसले गोवलिपिज्जासि त्ति बेमि ।
1 जुलाई, 1993 राजलदेसर
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अपथ का पथ
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