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मूल्यवान् क्षण
पष्मान् !
चैतन्य की धारा बाहर की ओर प्रवाहित हो रही है। उसे अंतर की ओर प्रवाहित करो।
स्थूल शरीर-औदारिक शरीर की क्रिया और स्पंदन का साक्षात् करो।
जो वर्तमान क्षण में शरीर में घटित होने वाले सुख-दुखः के स्पन्दनों को देखता है, वह वर्तमान क्षण का अन्वेषण करता है।
जो वर्तमान क्षण का अन्वेषण करता है, वह अप्रमत्त हो जाता है।
इस स्थूल शरीर के भीतर एक सूक्ष्म शरीर है, जिसका नाम है तैजस शरीर।
उसके भीतर सूक्ष्मतर शरीर है, जिसका नाम है कर्म शरीर । उसके भीतर है आत्मा ।
स्थूल-शरीर के दर्शन का अभ्यास जैसे-जैसे परिपक्व होता है, वैसे-वैसे चेतना सूक्ष्म शरीर के दर्शन की ओर आगे बढ़ेगी ।
सूक्ष्म शरीर के दर्शन का अभ्यास परिपक्व होकर सूक्ष्मतर शरीर के स्पन्दनों का साक्षात् कराएगा।
सूक्ष्मतर शरीर के स्पंदनों का अभ्यास पुष्ट बनते ही आत्मसाक्षात्कार का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा।
आचारांग का विधि सूत्र हैजे इमस्स विग्गहस्स अयं खणेत्ति मन्नेसि।
इस शरीर का यह वर्तमान क्षण है... इस प्रकार अन्वेषण करने वाला अप्रमत्त होता है।
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1 अगस्त, 1993 राजलदेसर
अपथ का पथ
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