Book Title: Apath ka Path Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Jain Vishva BharatiPage 11
________________ To दुर्शन-शक्ति का नया आयाम चक्षुष्मान् ! देखने का साधन है-चक्षु । चक्षु की चार अवस्थाएं हैं• निमेष . अनिमेष • अर्द्ध निमीलित • निमीलित निमेष दृष्टि के समय पलक झपकती है। अनिमेष दृष्टि के क्षण में पलक का झपकना बंद हो जाता है। अर्द्ध निमीलित दृष्टि के क्षण में आँखें आधी खुली रहती हैं और आधी बन्द । निमीलित अवस्था में आँखें पूर्णतः बन्द हो जाती हैं। भगवान महावीर अनिमेष प्रेक्षा का प्रयोग करते थे। वे लम्बे समय तक खुली आँख से एक वस्तु को देखते रहते । इस अनिमेष प्रेक्षा के प्रयोग ने उनकी दर्शन शक्ति को नए आयाम दिए। अभ्यास करते-करते वे आत्मदर्शी अथवा सर्वदर्शी बन गए। चक्षु की तेजस्विता बढ़ गयी। बच्चे उनकी ध्यान मुद्रा को देखकर विस्मित हो जाते । विस्मय की भाषा में बोल उठते-आओ, देखो इन आँखों को, जिनमें से प्रकाश की रश्मियां निकल रही हैं। आयतचक्खू लोगविपस्सी अदुपोरिसिं तिरियं भित्ति, चक्खुमासज्ज अंतसोझाईअह चक्खुभीया सहिया, तं हंता हंता बहवे कंदिसु ॥ संयत- चक्षु लोक-दर्शी होता है। भगवान् महावीर प्रहर-प्रहर तक आँखों को अपलक रख तिरछी भीत पर मन को केन्द्रित कर ध्यान करते थे। (लम्बे समय अपलक रही आँखों की पुतलियां ऊपर की ओर चली जाती) उन्हें देखकर विस्मित हुई बच्चों की टोली 'हंत ! हंत ! कहकर चिल्लाती- दूसरे बच्चों को बुला लेती। 35 1 अप्रैल, 1993, सरदार शहर H ) 10 अपथ का पथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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