Book Title: Apath ka Path
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 23
________________ -- र अस्विन्ब और पर्याय चक्षुष्मान् ! अस्तित्व छेदन, भेदन, दहन और हनन से परे है । आत्मा के विषय में उल्लेख है-शरीर के हत होने पर भी वह हत नहीं होता—न हन्यते हन्यमाने शरीरे। परिवर्तन पर्याय है । वह अस्तित्व का उपजीवी है। जो छिन्न-भिन्न, दग्ध और हत होता है, वह पर्याय होता है। यह पर्याय ध्यान करने वाले के लिए आलंबन बनता है। ध्याता प्रारम्भ काल में अछिन्न, अभिन्न, अदाह्य और अहत का साक्षात्कार नहीं करता। वह शरीर-प्रेक्षा के गहन अभ्यास काल में अनुभव करता है कि शरीर में कुछ छिन्न हो रहा है, कुछ भिन्न हो रहा है और कुछ हत-प्रहत हो रहा है। पर्याय-ध्यान धर्म ध्यान अथवा धर्मों का ध्यान है। धर्म के ध्यान का परिपक्व अभ्यास धर्मी को ध्यान की दिशा में अग्रसर करता है। यह प्रक्रिया है खण्ड से अखण्ड की ओर प्रस्थान की। आत्मा धर्मी है। उसमें अनेक धर्म है। अनेक पर्याय हैं। पुद्गल संयुक्त आत्मा में शरीर है, वाणी है, मन है। उसमें परिवर्तन का चक्र चलता रहता है। परिवर्तन से अपरिवर्तन की भूमिका पर आरूढ़ होकर जो अनुभव करता है, उसकी अनुभूति महावीर की वाणी में इस प्रकार है। __ से ण छिजई, ण भिज्जइ, ण डज्झइ, ण हम्मइ कं च णं सव्व लोए। 1 मई, 1994 सिधरावली 3 22 अपथ का पथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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