Book Title: Apath ka Path Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Jain Vishva BharatiPage 29
________________ वह ज्ञानी है चक्षुष्मान् ! मनुष्य मनुष्य है। पदार्थ पदार्थ है। न मनुष्य पदार्थ के लिए बाधा है और न पदार्थ मनुष्य के लिए बाधा है। दोनों अपने-अपने अस्तित्व में स्वतंत्र हैं। पदार्थ जीवन चलाने के लिए आवश्यक है, उपयोगी है इसलिए मनुष्य और पदार्थ में सम्बन्ध स्थापित हो गया है। सम्बन्ध उपयोगिता का है। वह संग या आसक्ति में बदल गया। अब वह मात्र उपयोगी नहीं है । वह आसक्ति का हेतु बन गया। उपयोगी हो, वह भी जरूरी है और अनुपयोगी उससे अधिक जरूरी है। आंतरिक मोह का उसके साथ गठबंधन हो गया। उपयोगिता बहुत पीछे रह गई। जितनी आवश्यकता उतना पदार्थ-यदि यह संकल्पना होती तो मनुष्य पदार्थाभिमुख नहीं होता, वह अपनी चेतना के अभिमुख रहता। पदार्थ के प्रति आसक्ति अपने ही अज्ञान के कारण हो रही है। अपने अस्तित्व का ज्ञान पदार्थ के भार के नीचे दब गया है। इसलिए शास्त्र का भार ढोने वाले व्यक्ति को भी ज्ञानी कहना मुश्किल tho - ज्ञानी वही है, जो पदार्थ को मात्र उपयोगी मानता है। इस सारी अवधारणा को महावीर ने एक सूत्र में कहा ए ए संगे अविजाणओ। अज्ञानी के लिए पदार्थ संग है, आसक्ति है। 1 नवम्बर, 1994 अध्यात्म साधना केन्द्र नई दिल्ली 28 अपथ का पथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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