Book Title: Apath ka Path
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 27
________________ पश्यक : अषश्यक चक्षुष्मान् ! मनुष्य दो श्रेणियों में विभक्त है ! एक श्रेणी है पश्यक् (द्रष्टा) की और दूसरी श्रेणी है अपश्यक् (अद्रष्टा) की। पश्यक् वीतराग-चरित वाला होता है। अपश्यक् राग-चरित और द्वेष-चरित वाला होता है। राग-चरित और द्वेष-चरित का तात्पर्यार्थ है पक्षपात । पक्षपाती मनुष्य उपाधि के रंग से रंजित होता रहता है जैसे स्फटिक उपाधि के अनुरूप बहुरंगी बन जाता है। पश्यक् तटस्थ होता है । वह किसी दूसरे के रंग से अनुरक्त नहीं होता, अपने स्वरूप में स्थित होता है। जो देखता है, उसका भोक्ता भाव कम होता चला जाता है इसलिए वह घटना, दृश्य और परिस्थिति से बंधता नहीं। ज्ञान प्रबल होता है तब घटना का प्रभाव दुर्बल बन जाता है। ज्ञान दुर्बल होता है तब घटना का प्रभाव प्रबल बन जाता है। शिष्य ने पूछा-भंते ! क्या पश्यक् के उपाधि होती है ? महावीर ने कहा-नहीं होती। किमत्थि उवाही पासगस्स ण विज्जई ? णत्थि ! 1 सितम्बर, 1994 अध्यात्म साधना केन्द्र नई दिल्ली 26 अपथ का पथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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