Book Title: Apath ka Path Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Jain Vishva BharatiPage 21
________________ गति आगति का विज्ञान चक्षुष्मान् ! एक विशाल आयोजन । हजारों की भीड़ । गति आगति हो रही है । कोई आ रहा है, कोई जा रहा है । आने जाने का पता चल रहा है । कौन कहां से आ रहा है, कौन कहां जा रहा है, इसका पता नहीं है। संसार बहुत बड़ा मेला है, बहुत बड़ा आयोजन है । कोई आता है, उसका पता लगता है । कोई जाता है, उसका भी पता चलता है । कौन कहां से आया और कौन कहां चला गया, यह अज्ञात है । ध्यान का एक सूत्र दिया गया— अपने आपको देखो । ध्यान के गहरे में जाओ और इसका पता लगाओ-कहां से आया हूं और कहां जाऊंगा ? 20 यह आगति और गति का विज्ञान व्यक्ति के आचरण का नियामक बनता है। सोचने का अवसर मिलता है —— मैं वर्तमान स्थिति से ह्रास की स्थिति में न जाऊं । --- विकास के बाद फिर हास की ओर लौटना किसी को प्रिय नहीं है । इसलिए आवश्यक है ध्यान की गहराई में उतरना और आवश्यक है आगति एवं गति का साक्षात् करना । आगतिं गतिं परिण्णाय । 1 मार्च, 1994 सीकर Jain Education International For Private & Personal Use Only अपथ का पथ www.jainelibrary.orgPage Navigation
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