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गति आगति का विज्ञान
चक्षुष्मान् !
एक विशाल आयोजन । हजारों की भीड़ ।
गति आगति हो रही है ।
कोई आ रहा है, कोई जा रहा है ।
आने जाने का पता चल रहा है ।
कौन कहां से आ रहा है, कौन कहां जा रहा है, इसका पता नहीं है।
संसार बहुत बड़ा मेला है, बहुत बड़ा आयोजन है । कोई आता है, उसका पता लगता है ।
कोई जाता है, उसका भी पता चलता है ।
कौन कहां से आया और कौन कहां चला गया, यह अज्ञात है ।
ध्यान का एक सूत्र दिया गया— अपने आपको देखो ।
ध्यान के गहरे में जाओ और इसका पता लगाओ-कहां से आया हूं और कहां जाऊंगा ?
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यह आगति और गति का विज्ञान व्यक्ति के आचरण का नियामक बनता है। सोचने का अवसर मिलता है —— मैं वर्तमान स्थिति से ह्रास की स्थिति में न जाऊं ।
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विकास के बाद फिर हास की ओर लौटना किसी को प्रिय नहीं है । इसलिए आवश्यक है ध्यान की गहराई में उतरना और आवश्यक है आगति एवं गति का साक्षात् करना ।
आगतिं गतिं परिण्णाय ।
1 मार्च, 1994
सीकर
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अपथ का पथ
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