Book Title: Anusandhan 2019 07 SrNo 77
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अनुसन्धान-७७
संयमयोगाकरणविगानो, भवसागरपतितो जिनभानो ! । संप्रति तव पदसेवनलीनो, मां किमु पारग ! तारयसे नो ? ॥४॥ चेतन० तव पदपङ्कजभजनविहीना, भवमटन्ति मनुजा अतिदीनाः । ये पुनरनिशं सेवनलीनाः, ते भवन्ति सुखसागरमीनाः ॥५॥ चेतन० मां विधेहि निजसेवालीनं, सीमन्धर ! भवसङ्गतिदीनम् । नैव समीहे सुरनरभोगं, किन्तु विभो ! तव सेवनयोगम् ॥६॥ चेतन०
चेतन ! कुरु सीमन्धरशरणम् ॥ इति सीमन्धरजिनवरशरणं ये सततं विरचन्ति जातिजरामृतिसन्ततिभीतिं ते भविका न करन्ति । मुनिजनचरिताराधनविषये निजचेतसि विकसन्ति श्रीहीरविजयसूरीशविनेयो वदति शिवे निवसन्ति ॥७॥
इति श्री सीमन्धरस्वामिस्तवनम् ॥
॥३॥
(४) श्रीगुरुचरणमुदारं, स्मारं स्मारं स्वमानसे भक्त्या । मेरुमहीधरधीरं, वीरं नुतिगोचरीकुर्वे ॥१॥ केवलकमलालीलागारं, शमदमगुणमणिपारावारम् । भविजनवाञ्छितफलमन्दारं, वन्दे श्रीजिनवीरमुदारम् ॥२॥ भववनगहने निशितकुठारं, भरतभूमिललनागलहारम् ।। मुनिमरालकोटीकासारं, वन्दे० ॥ मदनदवानलविपुलासारं, त्रिभुवनजनतावरशृङ्गारम् । उपशमरसभरभृतभृङ्गारं, वन्दे० ॥ हेलाटालितमारविकारं, भवकूपे पततामाधारम् ।। रूपाकम्पितकमनाकारं, वन्दे० ॥
॥५॥ भविककोटिकृतभवनिस्तारं, त्रिजगति विकसितगुणविस्तारम् । कृतिततिमानसशुकसहकारं, वन्दे० ॥ ॥६॥ काञ्चनकजकृतपादविहारं, सुरनरशंसितगुणसम्भारम् । समजनलोचनसुखदातारं, वन्दे० ॥
॥४॥
॥७॥

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