Book Title: Anusandhan 2019 07 SrNo 77
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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६७
जून - २०१९ संजयाऽसंजया(य) त्ति वत्तव्वं सिया? गोयमा ! णो तिणढे समढे, असब्भूयमेयं ।] देवा णं भंते ! किं खाइ णं देवा वत्तव्वं सिया? (से किं खाइ णं भंते ! देवा इति वत्तव्वं सिया ?) गोयमा ! देवा णं नोसंजया इति (इ) वत्तव्वं सिया ।" इति श्रीभगवतीसूत्रपञ्चमशतकचतुर्थोद्देशके ।
एहनु अर्थ – श्रीमहावीर प्रति गौतम पूछइ छड् – “जे देवता संयति कहीइ?" भगवंत कहइ छइ - "ए अभ्याख्यान कुडुं आल वचन थाइ ते माटइ संयति न कहीई" | तिवारइ गौतमइं पूछिउं - "असंयति कहीइ ?" भगवंत कहइ - "निठ्ठरवचन-कठिनवचन ते माटइ असंयति न कहीइ।" "खाइ कहतां वली देवतानइ स्युं कही बोलावीइ ?" एहवं गौतमइ पूछिउं । तिवारिं भगवंति कहउं - "देवतानइ नोसंयति कहीइ" । इत्यादिक सिद्धांतप्रकरणनइ विषइ कठिन वचन बोलवू निषेध्युं छइ । अनई कुणि किं "परपक्षीनी प्रतिमा होलीना राजानइ सरखी" एहवां घणां कठिन वचन पोतानां कीधां शास्त्रनइ विषइ लिख्या छइ । ते माटई श्रीहीरविजयसूरीश्वरइं प्रथम बोलनइ विषइ लिख्यउं छइ - "परपक्षीनइं कुणिं कठिन वचन कहिवू नही ।" ॥ ए प्रथम बोल ॥
तथा आपणां पिआरां धर्मकार्य अनुमोदवाना अक्षर लिखीयइ छइ । यथा - "जिणजम्माइ[सु] ऊसव-करणं तह महरिसीण पारणए ।
जिणसासणंमि भत्तीए(भत्ती)-पमुहं देवाण अणुमन्ने ॥३०८|| तिरिआण देसविरई पज्जंताराहणं च अणुमोए । सम्मइंसणलंभं अणुमन्ने नारयाणं पि ॥३०९।। सेसाणं जीवाणं दाणरुइत्तं सहावविणिअत्तं । तह पयणुकसायत्तं परोवगारित्तभव्वत्तं ॥३१०॥ दक्खिन्नदयालुत्तं पियभासित्ताइ विविहगुणनिवहं । सिवमग्गकारणं जं तं सव्वं अणुमयं मज्झ ॥३११।। इय परकयसुकयाणं बहूणमणुमोअणा कया एवं । अह नियसुचरियनियरं सरेमि संवेगरंगेणं ॥३१२॥ एमाइ(ई) अण्णं पि अ जिणवरवयणानुसारि जं सुकडं । कय कारिअ अणुमोइअ महयं तं सव्वमणुमोए ॥३१३ (३६९)।
इत्याराधनापताकायाम् ।

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