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अनुसन्धान-७७
कई रीते दीक्षा स्वीकारी अनुं जीवंत वर्णन छे. त्यारपछी प्रभुनो विहार, स्वजनोनी विदाय, अनुक्रमे केवलज्ञान अने अन्ते शिववधू साथेनो अन्तिम विवाह इत्यादि सर्व विगतो आवरी लेवाई छे.
___आ हस्तप्रतनी प्राप्ति वि.सं. २०६७मां कलकत्ताना चातुर्मास दरम्यान गुरुदेव श्री आ.भ. जगत्चन्द्रसूरिजी म. (डहेलावाळा) द्वारा ९६ केनिंग स्ट्रीटना संपूर्ण उधईग्रस्त हस्तलिखित ज्ञानभंडारना जीर्णोद्धार, कार्य हाथ धरायुं त्यारे आ स्तवन हाथमां आव्युं. तरत ज तेनुं लिप्यन्तर करी दीधेल. ते अत्रे प्रगट थई रह्यु
॥ ० ॥ श्री वीतरागाय नमः ॥ अलबेलानी देशी ॥ प्रथम ढाल ॥ वंदु वीर जिणेसरू रे लाल तीरथपति अरिहंत मेरे प्यारे रे दीक्षा कल्याणक गायस्युं रे लाल महिमावंत महंत मेरे प्यारे रे वंदु १
ए आचली । त्रिशलानंदन चंदलो रे लाल तात सिद्धारथ राय मेरे प्यारे रे हेमवरण हरिलंछलो(नो) रे लाल जस पद सेवे सुरराय मेरे प्यारे रे. २ यौवनवय जिन आवीया रे लाल परण्या यशोदा नारी मेरे प्यारे रे पंचविषय सुख भोगवु रे लाल त्रिभुवननो शिणगार मेरे प्यारे रे. ३ त्रीस वरस गृहमे वस्या रे लाल व्रत ग्रहवा धरे भाव मेरे प्यारे रे ते समये देव लोकांतिका रे लाल आवी कहे सदभाव मेरे प्यारे रे. ४ भोगकरम पूरे थये रे लाल स्वयंबुद्ध भगवान मेरे प्यारे रे उ(पू)रण सवि पृथवी करी रे लाल दीधु वरसीदान मेरे प्यारे रे. ५ नंदीवर्धनभ्रात ने रे लाल प्रभु पूछे करुणावंत मेरे प्यारे रे राजन अवधि पूरी थइ रे लाल हवे व्रत लेस्युं गुणवंत मेरे प्यारे रे ६ दीक्षा महोछव मांडियु रे लाल नंदीवर्धन नेह मेरे प्यारे रे । कुंड:पुर शिणगारियु रे लाल स्वर्ग समोवडी तेह मेरे प्यारे रे. ७ मंडप मोटो मांडियु रे लाल तोरण बांध्या बार मेरे प्यारे रे ध्वज आरोप्या लहकता रे लाल रचना कीधी सार मेरे प्यारे रे ८