Book Title: Anusandhan 2019 07 SrNo 77
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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जून - २०१९
१३३
संशोधित एवो पाठ-text छे. हाल परिस्थिति ए छे के आमां शोधित पाठनी तारवण अने ए माटेनुं संशोधन लगभग लुप्त छे. परिणाम ए आव्युं छे के आवां बधां ज सम्पादनोने संशोधन मानी लेवामां आवे छे. लिखित परम्परानी कृतिओना सम्पादननी वात करीए तो बे-त्रण हस्तप्रतो उपरचोटिया जोई एकने पसंद करी अने लिपिबद्ध करी लाडु परनी खसखसनी जेम टीपमां अन्य हस्तप्रतोनां पाठान्तरो नोंधवा ए शुं संशोधित सम्पादन छे ? पाठ-निर्धारणनी सज्जता क्यां छे ? ए माटेनी पद्धति विशे केटलुं जाणीए छीए ? स्वीकृत मूळ पाठनी पण चकासणी केम करवी एनी जाणकारी केटलाने ? कोई पण हस्तप्रतना अक्षरो, एना शब्दो, पंक्तिओ उकेली तेना आधारे पाठ मूकी आपवो के पूर्वसूरिए आपेला पाठने ज पुनर्मुद्रित करी उपरटोचिया अभ्यास साथेनां, अधकचरा टिप्पण साथेनां संपादनोनो संशोधित सम्पादनमा समावेश थाय ? आस्वादन-विवेचन(प्रवाह/ प्रकार/कर्ता/कृतिनिष्ठ) वगेरेनो पण संशोधनमा समावेश करीशुं ? 'स्टडी इन', के अन्य बीजा प्रकारो – जे कंई अध्यापकीय विवेचनामां थाय ए बधानो समावेश पण Re-serchमां शुं थई शके ? संस्कृत-प्राकृत-पालि, अर्धमागधी जेवा प्रकारो, अपभ्रंश, नवी जन्मेली आर्यभाषाओना प्राचीन-मध्यकालीनअर्वाचीन जेवा तबक्का, एमां थयेला शब्द अने अर्थनां परिवर्तनो, एना परना तत्कालीन संजोगो अने कारणोनी जाणकारी, कोई पण अभ्यस्य कृतिनां जातिकुळ अने स्वरूपनां समयानुसारी परिवर्तनो वगेरेनी जाणकारी वगर कोई पण कृतिपाठ परो निर्धारित थई शके ? के. बी. व्यास, भोगीलाल सांडेसरा, के. ह. ध्रुव, हरिवल्लभ भायाणी ए आपणी नजीकनी पेढी अने पछीना जयंत कोठारी के रमणिकभाई के कान्तिभाई शाह जेवा संशोधकोनी परम्परा हवे छे ? संशोधक अवॉर्डो कोने आपवा? अपाया के अपाय तो कोने ? मारी मान्यता, जिनविजयजी कुळना ज एक छात्र तरीके एवी छे (कदाच खोटी के रूढिचुस्त) के आ दृष्टिए केटलाक संशोधक-अवॉर्ड चीलो चातरी गया छे. मारी रूढ दृष्टिए तो इन्डोलोजिकल स्टान्डर्ड - दृष्टि, धोरण, पद्धतिए जे अभ्यास पार पाडे ते ज संशोधन गणाय.
हवे ज्यारे मौखिक परम्परानी कृतिओनां सम्पादनोने संशोधक तरीके निश्चित करवानां थाय त्यारे परिस्थिति अने निर्णय विशेष मुश्केल छे. कंई पण सांभळवू, नोंधq के ध्वनिमुद्रित करी लिपिमा उतारवू मात्र ट्रान्सस्क्रीप्शन छे.

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