Book Title: Anusandhan 2019 07 SrNo 77
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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जून - २०१९
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प्रमाणमां अजाणी छे तेना पर काम करवू तो खूब ज मुश्केल. माहितीदाता शोधवा, पसंद करवा, एने माहिती आपवा संमत करवा, खुश राखी खीलववा, ढंढोळवा, जरूर पड्ये छंछेडवा, मनाववा, अजाण्यो कोई 'पोते ज जेनो मालिक छे' ते लई जाय छे, ध्वनि मुद्रित करे छे, लखी ले छे एथी जे क्षोभ-संकोचविरोध जन्मे तेने समजी समाधान करवं, दुर्गम प्रदेशोमां आवागमननां टांचा साधनो द्वारा पहोंचवू, व्यक्तिगत-सामाजिक-रूढि-विधि-मान्यतागत विरोधजन्य प्रश्नो अने संघर्षोनो सामनो करवो, मनावी-पटावी ध्वनि मुद्रित करवू, एकनी एक केसेट वारंवार सांभळी तेने लिपिमा उतारवी, केटलाक तद्दन अजाण्या अने स्पष्ट तेना उच्चारो सांभळीने जेमां बधा ज उच्चारो माटेना अक्षरो नथी, निश्चित चिह्नो नथी तेनो पाठ बांधवो, नथी ज्यां कोई मुख्य शीर्षक के खंड अने पंक्ति क्रम, कयां मूळ गान-कथन अने प्रोत्साहक ध्वनिओ, होंकारा-पडकारा, शिष्टमां बोली पण न शकाय एवा गालिप्रदानो छे ते बधुं जाळवी एनो पाठ बांधवो, आ बधी सामग्रीने ए जातिनी अने अन्य शिष्ट मनाती परम्पराओ साथेना अनुबन्धो तारववा, कोई पण कारणे माहितीदाता छेडाय, मनहृदय चोरतो थाय त्यारे साहजिक प्रेम-लागणी-निष्ठाथी वारण करवू, ए सामग्रीनो सांस्कृतिक सम्बन्धअनुबन्ध तपासवो - ए पण जेने आपणे जाणता नथी, जाणीए तो तिरस्कार करी नीति नाक चडावी छोडवा तत्पर थई एवी स्थिति निवारवा ग्रन्थिमुक्त थर्बु : केटकेटला अगणित तबक्के केवी-केवी-केटकेटली मुश्केलीओ ! जे अनुभवी होय ते ज जाणे !
- आ स्थिति वच्चे आ सम्पादक-संशोधके कार्य कर्यु छे. एमनी संस्कृतिने समजी, ग्रंथिमुक्त बनी काम कयुं छे. खास तो बहु ज महत्वनी बाबत ए छे के भगवानदासे भीलो पोते पोतानी आ सामग्रीने जे पर्याये जाणे-ओळखावेउल्लेखे छे ते ज आपे छे. ए बधांनुं प्रशिष्टीकरण करवू ए मोटुं भयस्थान छे. अने भीलो पोते आ सामग्रीने, कृति, परम्पराने जे नाम आपे छे ते ज नाम आपे छ ! 'अरेलो'- ए 'लोकमहाकाव्य' नथी करता के केवळ 'वारता' प्रयुक्त छे ते माटे 'रामायण' के 'रामकथा' नथी प्रयोजता. मात्र अभ्यास-भूमिकामां आख्यान/लोकाख्यान वगेरे पर्यायो प्रयोजे छे. एमनी आ शिस्तने कारणे ज 'अरेलो' शब्दना मूळमां वैदिक समयनो 'ईळे' एवो पराक्रमगाथानो ज मूळ पर्याय छे ते तथ्य प्रगट थाय छे.

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