________________
१३४
अनुसन्धान-७७
लिपिबद्धीकरण छे. संशोधित पाठनिर्धारण - सम्पादन नथी. नवी के जूनी कंठ प्रवाहनी श्रुत-रचनानुं लिप्यन्तरण करवू ते संशोधन नथी. नवी हवा 'लिप्यन्तर' मात्रने आछा-थोडा-छीछरा अभ्यास-रसदर्शन साथे आपी 'संशोधक-सम्पादक' रूपे प्रस्तुत थवं, तेम ज तेनो लिखित रूपमा उल्लेख करवो उचित न गणाय. कथक-गायननी मूळ रजूआतना स्वीकृत पाठना कौमार्यने जाळवq, एमां क्यांय पण संशोधक-सम्पादके हस्तक्षेप न करवो ए स्वीकृत सुवर्णनीति छे. केम के ए माहितोदाता कलाकार कथक-गायकनी प्रोपर्टी छे. तेमां हस्तक्षेप न थाय, परंतु ए जाळवीने पण मूळना क्रममां एनी तर्कबद्ध एवी घटनाशृंखलामां, गृहीत के स्मृतिदोषने कारणे थती विसंगतिने सम्पादके टीपनोंधमां के कौंसमां जणाववी पडे. एना ए माहितीदातानी अन्य रजूआतने पण ध्यानमा लेवी पडे, ए कृतिपरम्पराना अन्य कलाकारना प्रस्तुतीकरणना सम्पादित पाठ के पाठो ध्यानमां लेवा पडे अने नोंधवा पडे. भारतना सुदीर्घ कथाओना डॉ. जे. डी. स्मिथ जेमणे पाबुजी-कथा आपी के श्याम मनोहर पांडेय जेमणे चनैनी(चन्द्रा) कथाना आठ रूपान्तरित पाठोनां क्षेत्रकार्य, ध्वनिमुद्रण, सम्पादनो कर्यां एमणे मौखिक रजूआतना पाठनी चकासणी अने निर्धारणमां आ पद्धति अपनावी छे. लिखितमां जेम मुख्य रूपमा स्वीकृत नथी एवी हस्तप्रतोना पाठने पण जेम ध्यानमा लेवा पडे छे, तेम मौखिक पाठना सम्पादनमां पण आ प्रकारनी पद्धतिनो आधार लेवो पडे छे. हकीकत ए छे के इन्डोलोजिकल स्टडीनी ज पद्धति लिखित अने मौखिक बन्ने पाठ निर्धारणमा समान छे.
एक सन्मित्र साथीना अवॉर्डमां मने सामेल थवानी, बोलवानी तक मळी ए बदल हुं संस्थानो आभार मानू छु अने श्रोताओनो पण. अंते मारा जे विचारो व्यक्त कर्या एमां मुख्य हेतु संशोधननी आपणी विभावना स्पष्ट बने अने सम्पादनमा शास्त्रीय धोरणो जळवाय ए स्पष्ट करवानो ज छे. इच्छीए के लिखित होय के मौखिक एवी कृतिना सम्पादनमा विशेष सावधानी वरताय अने अभ्यासधोरण जळवाय.
आभार. खास तो 'योजक : तत्र दुर्लभ' उक्ति ज बधे प्रयोजी शकीए एवी वर्तमान स्थितिमा विश्वकोश जेवी आदर्श-सर्वोत्तम कलासंस्था अने तेना मुख्य सूत्रधार डॉ. कुमारपाळ देसाई त्रण त्रण कार्यक्रमोने पण पूरी कार्यदक्ष आयोजन दृष्टिए योजी पूर्ण सफळ बनावे छे.