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अनुसन्धान-७७
अन्ड टेकस्ट एडिटिंगनी पद्धति, संशोधन प्रकार-पद्धति, आदिवासी कंठ्यपरम्पराना सम्पादननो इतिहास, ग्रामीण-नागरिक परम्पराथी एनी भिन्नता अने ओळख, ए माटेनां परिबळो ने.कारणो : आ बधुं जे इतिहास अने संशोधननी भूमिकाए में चच्र्यु के आ कण्ठप्रवाहनी विशिष्ट के लाक्षणिक एवी जातिओ अने स्वरूपो genres & forms, एनो छेक ऋग्वेदकाळ साथेनो अनुबन्ध वगेरे तारव्यु एमां मने बधी ज अभ्यासक्षम सामग्री घेरबेठा खुरशीटेबल पर काम करतां भगवानदासना सम्पादनमांथी मळी छे. अमे बन्ने आ रीते पारस्परिक मित्र अने एकबीजाना गुरुशिष्य जेवा ज छीए. बन्ने एकबीजामांथी ज घj जाणीने शीखी शक्या. आमचेर रिसर्च ने फिल्डबेइझ्ड रिसर्च जोडिया छे.
ई. स. १९४३ना नवेम्बरनी १९मीए जन्मेला आ पटेल ई. स. १९८३मां, एमनी चालीसनी वये, भील गोठिया गीतोनुं सम्पादन 'लीलामोरिया' आपे छे. तेनां त्रण वर्ष पहेला ज एटले के ई. स. १९८०ना फेब्रुआरीमां भील आदिवासीनी भाषा-संस्कृतिनी दीक्षा ले छे. कहो के खेडब्रह्माना आदिवासी भील पटेल बने छे. अने मिलेनियमना आरम्भना दसका सुधी एक ज जाति अने एक ज प्रदेशनी आदिजातिनी भाषा-संस्कृतिमां रत रहे छे. कहो, बे पूरा 'तप'. एमणे एक ज निश्चित प्रदेश, जाति, भाषा-संस्कृतिनो अभ्यास कर्यो. आवा सातत्यपूर्ण कार्यमां एमना पहेलां गुजरातमा मात्र शंकरभाई अने रेवाबहेन तडवी छे. परंतु तेओ तो सम्बन्धित भाषा-संस्कृतिमां ज उछरेलां. स्वजाति पर काम करवानुं मुश्केल न गणाय. अहीं भाषा-संस्कृति अने जाति एकदम जुदां ने पाछा आ तो कृषिकार पटेल ! बीजा पूर्वसूरिओमां दक्षिण गुजरातना राजपीपळा विस्तारना प्रेमगीत 'छेलिया' पर काम करनारा डो. जयानन्द जोशी अने यु.जी.सी.ना प्रोजेक्ट पर आदिवासी बोलीओ पर काम करी चूकेला भाषाशास्त्री एवा समर्थ लोकविद्याविद डॉ. शान्तिभाई आचार्य. ए तो गुजरात विद्यापीठना प्रोफेसर एटले गुरु पण खरा. भगवानदासनी विशेषता ए के एमणे युनिवर्सिटी कक्षाना अभ्यास वगर ज भीली भाषा परम्पराना साहजिक प्रेम-लगावथी ज काम कर्यु – निजानन्दे ! शास्त्र अने सिद्धान्तो एमणे अनुभवे ज आत्मसात् कर्यां.
लोकसाहित्यना कोई पण क्षेत्रना के प्रकारना कण्ठप्रवाहनी सामग्री मेळववी मुश्केल. तेमां पण जेनी मातृभाषा, जाति, संस्कृति भिन्न छे उपरांत