Book Title: Anusandhan 2019 07 SrNo 77
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
१२६
अनुसन्धान-७७
विहंगावलोकन
- उपा. भुवनचन्द्र
अनु० ७६नी विशिष्ट अने रसप्रद कृति छ : विजयसेनसूरीन्द्र स्वाध्याय. हरियाली स्वरूपनी आ सज्झाय पर कर्ताए पोते संस्कृतमा व्याख्या करी छे. खरेखर, व्याख्या विना आ कृति समजाय एम नथी. कृति शुद्ध छे. क्यांक म.गू. भाषानी दृष्टिए वाचनभूल छे. क. १ घुरघुरई, क. २ देखिइं वगेरे स्थानोमां बिन्दु-अनुस्वार न होय. अनुस्वार होय तो बहुवचन थाय, ज्यारे अहीं एकवचन अपेक्षित छे. आवां स्थानो सम्पादके शुद्ध करवां जोईए.
प्रकीर्ण स्तोत्रादिमां प्रथम ब्रह्मर्षिकृत स्थंभनपार्श्वनाथ स्तवन छे, ते प्रकाशित छे, पार्श्वचन्द्रगच्छमां प्रसिद्ध छे. बीजुं 'जिनस्तवन' नोंधपात्र छे. आ कूटकाव्य प्रकारनी प्रहेलिकावाळु स्तवन छे. श्लोक २ थी शरु करी क्रमशः सात विभक्तिनी कर्तृगुप्त, कर्मगुप्त वगेरे प्रहेलिका आमां छे. स्त. ७, क. २ - 'हुआ आयती' छे त्यां एक आ वधारानो छे. 'हुआ यती' पाठ होय. स्त. ९, कडी ५ – 'अव्यां सात' ने स्थाने 'आव्यां सात' एम वांचतां अर्थसंगति थाय छे, (अव्याघात)नी कल्पना करवी जरूरी नथी. क. ६मां 'सामिणउं'ने स्थाने 'सुमिणउं' वांचq योग्य रहे. क. ३९मां 'दह-ताप' नहि, पण 'दुहताप' होवू घटे.
खम्भातना चिन्तामणि पार्श्वनाथ जिनालयना इतिहासने तथा सेठ राजियावाजियाना सुकृत्योनी विगतने समावती गुजराती रचना महत्त्वपूर्ण छे. रचना प्रायः शुद्ध छे. सम्पादके पूर्वापर विगतो आपी छे अने जरूरी चर्चा पण करी छे. ढा. ३ क. ९३ : छोति, शब्दनोंधमां आनो अर्थ 'छोतरां' आप्यो छे पण तेम नथी. अर्थ छे : छूताछूत, आभडछेट. ढा. ५ क. ४ त्रूटकमां 'खांपर्यु' छे. अर्थ खोड, खामी, कचाश जेवो समजवानो छे. गुजरातीमां आजे 'खोड़खांपण' प्रचलित छे ज. ए ज कडीमां 'सो,' छे ते स्थाने 'पो,' शब्द सम्भवित छे. पोढुं = मोटुं. 'खांपणुं धननइ एह पोहूँ' : धननी मोटी खोट. शुभवीर कृत पूजाओमां ढाळने अन्ते श्लोको बोलाय छे तेमांना अमुकना. रचयिता विबुधविमलसूरि छे ए वात आ अङ्कमां छपायेल अष्टक थकी जाणवा मळे

Page Navigation
1 ... 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142