Book Title: Anusandhan 2019 07 SrNo 77
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 78
________________ जून - २०१९ ७१ यामुपदेशसप्ततौ तृतीयगुरुतत्त्वाधिकारे ॥१२॥ इत्यादिक ग्रंथाक्षरनि अनुसारइं करीनइ मिथ्यात्वीनां परपक्षीनां पोतानां धर्मकर्तव्य अनुमोद्यां दीसइ छइ । ते माटि श्रीहीरविजयसूरीश्वइं बीजा बोलनइ विषइ लिख्युं छइ - "जे परपक्षीकृत धर्मकार्य सर्वथा अनुमोदवा योग्य नही इम कुणिं कहवू नही । जे मार्टि दानरुचिपणुं, स्वभावि विनीतपणुं, अल्पकषायिपणुं, परोपकारिपj, भव्यपणुं, दाखिणालुपj, दयालुपणुं, प्रियभाषीपणुं इत्यादिक ये ये मार्गानुसारी धर्मकार्य ते जिनशासनथी अनेरां समस्तजीवसंबंधीआं शास्त्रनइ अनुसार अनुमोदवा योग्य जणाइ छइ । तो जैनपरपक्षीसंबंधी मार्गानुसारी धर्मकर्तव्य अनुमोदवा योग्य हुइ ए वातनुं स्युं कहवू ? इहां 'मार्गानुसारि' शब्दनुं स्यु अर्थ ते लिखीइ छइ - "जीवदया, दानादिक ये ये वीतरागवचननई अनुसरतां साधारण धर्मकार्य ते मार्गानुसारि कहीइ ।" तथा- "मार्ग-तत्त्वपथमनुसरति-अनुयातीत्येवंशीलं मार्गानुसारीति ।" ___ इति तृतीयपञ्चाशकवृत्तौ । एहनु अर्थ- 'मार्ग'शब्दइ तत्त्वमार्ग-जिनप्रवचन, तेहनइ अनुसरतांआश्रयतां ये ये धर्मकार्य ते 'मार्गानुसारी' कहीइ । अनइ उपदेशपदवृत्तिनइ विषइ पणि 'मार्गानुसारी' शब्दनु इम ज अर्थ वखाणु छइ । ते मार्टि शास्त्रवीइं 'मार्गानुसारी' शब्दनु एह ज अर्थ सत्य करी मानवु || ए बीजो बोल ॥ ___ तथा पोसामाहिं बिसणुं करवु आवश्यकचूर्णिवृत्तिप्रमुख ग्रंथनइ विषइ कहउं छइ । तथा शास्त्रमध्ये सोपर्मि-नोपकर्मि' आउखानो विचार कहउं छइ । इत्यादिक बोल शास्त्रनइ विषइ कह्या छइ । ते जाणवास्वरूप पणि प्रकासवास्वरूप नही । अनि कोएक नवी नवी प्ररूपणा करता ते मार्टि श्रीहीरविजयसूरीश्वरइ त्रीजा बोलना(न)इ विषइ लिखिउं छइ जे- "गच्छनायकनइ पूछ्या विना किसी शास्त्रसंबंधिनी नवी प्ररूपणा कुणइ न करवी ।" ॥ ए त्रीजो बोल ॥ तथा हवडां गच्छनायकनी दीक्षा विना योगवहनादिक क्रियानुष्ठान करिउं न सूझइ, ते अक्षर किहा सूत्रमांहि छइ ? ।१। १. सोपक्रम-निरुपक्रम ।

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